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भगवतीसूत्रे 'गोयमा !' हे गौतम ! 'बलदेवमायरो जाव' वलदेवमातरो यावत् अत्र यावत्पदेन 'णं बलदेवंसि गम्भं वक्कममार्णसि' इत्यन्तस्य ग्रहणं तथा च वलदेव मातरः खलु बलदेवे गर्भ व्युत्क्रामति सतीत्यर्थः संपद्यते 'एएसिं चोहसण्डं महामुविणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुझंति' एतेषां चतुर्द शानां महास्वप्ननाम् अन्यतरान् चतुरो महास्वप्नान् दृष्ट्वा प्रतिबुद्धयन्ते । 'मंडलियमायरो णं भंते पुच्छा' माण्डलिकपातरः खलु भदन्त ! इति पृच्छा पूर्ववत् प्रश्नः 'मडलियसि गम्भ वक्कममाणसि कइ महामुविणे पासित्ता णं पडिवुझंति' होती है ? इसके उत्तर में प्रभुने कहा-'गोयमा! बलदेवमायरो जाव' हे गौतम! बलदेव की माता जब पलदेव उनके गर्भ में आ जाते हैंतब इन १४ महास्वप्नों में से किन्हीं ४ महास्वप्नों को देखकर प्रतियुद्ध होती है। यहां यावत्पद से 'णं बलदेवंलि गम्भवक्कममाणसि' यहां तक का पाठ संग्रहीत हुआ है । तथा च यह आलापक इस प्रकार से बताकर उत्तररूप से कहना चाहिये-'बलदेवमायरो णं बलदेवसिगम्भवक्कममाणलि एएसिं चोद्दलण्हं महासुविणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासिन्ता णं पडिवुज्झति' ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते है-'मंडलियमाघ णं भंते ! पुच्छा' यहाँ पर भी 'पुच्छा' शब्द से 'मंडलियंलि गम्भं वक्कममाणंसि कह महासुविणे पासित्ताणं पडिवुज्झति' इस पाठ का संग्रह हुआ हैतथा-च-हे भदन्त ! जब मांडलिक राजा अपनी माता के गर्भ में आता है तब उसकी माता कितने महास्वप्नों को देखकर प्रतिवुद्ध मथ'त् l नयतना उत्तरम प्रसु छ है 'गोयमा बलदेलमायरो जाव' गीतम! मजवनी भात न्यारे मज तमना सभा मावे छे ત્યારે આ ચૌદ મહાસ્વપ્નો પૈકીના ચાર મહાસ્વપ્નો જાઈને પ્રતિ બુદ્ધ થાય छ. मेरले लय छे. मडिया यावत्' ५४थी 'णं बलदेवंसी गम' पक्कममाणंसि' अहि सुधाना पाइन। स थयो छ. स. मा भाता નીચે પ્રમાણે બતાવીને ઉત્તર રૂપે સૂત્રમાં કહેવું જોઈએ તે આલાપક આ प्रमाणे छे. 'बलदेव मायरो णं वलदेवसि गम' वक्कममाणखि चोदसण्हं महा सुविणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति !' वे गौतम स्वामी प्रसुने ये भूछे छे है 'मंडलियमायरोणं भने ! पुच्छा' मा पशु यय 'पुच्छा' मे शाथी 'मंडलियसि गम्भं वक्कममाणंसि कइ महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति' मा पाइने। सब थय। छे. तना अर्थ मा