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ચૂંટ
भगवतीसत्रे
गङ्गदत्तस्य खलु भदन्त | देवस्य 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियरकालं देवलोके स्थितिः प्रज्ञा कथितेति भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम! 'सत्तरससागरोमाई ठिई पन्नत्ता' सप्तदशसागरोपमा स्थितिः प्रज्ञप्ता सप्तदशसागरोपमा तत्र सप्तमे देवलोके स्थितिर्भविष्यतीति भावः । 'गंगदत्ते णं भंते! देवे' गङ्गदत्तः खलु भदन्त ! देवः 'ताओ देवलोगाओ आउक्खणं' तस्माद् देवलोकाद् आयुः क्षयेण 'जाब महाविदेहे वासे सिज्झिहिर' यावद महाविदेदे वर्षे सेत्स्यति, अत्र यावत्पदेन 'भवक्खणं ठिक्खएणं अनंतरं चयं चत्ता कहिं गच्छहिइ कहिं उववज्जिहि गोयमा !' इति सङ्ग्रहः 'जाव अंतं काहिड' यावदंतं करिष्यति,
पत्ता' स्थिति कितने काल की कही गई है । उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा !' हे गौतम! 'सत्तरससागरोबसाई गई पण्णत्ता' हे गौतम | गंगदत्त देव की देवलोक में १७ सागरोपमकी स्थिति कही गई है क्योंकि सातवें महाशुक्रकल्प में यही उत्कृष्ट स्थिति कही गई है | 'गंगदते णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउवखरण' यहां अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! देवलोक में जब गंगदत्त देव की आयु का क्षय हो जावेगा, तब वह वहां से चवकर कहां जावेगा ? कहां उत्पन्न होगा ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'जाब महाविदेहे वासे सिज्जिहिद्द' हे गौतम! यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा। यहां यावत् पद से 'भवक्खणं ठिक्खणं अनंतर चयं चहत्ता कहिं गच्छहिह ? कहिं उववज्जिहिए ? गोधमा !' यह पाठ गृहीत हुआ है। इसका तात्पर्य ऐसा है कि गौतम ने प्रभु से प्रश्न किया है
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डेंटला आज सुधीनी स्थिति उही छे. तेना उत्तरमा अलु हे छे हैं " गोयमा ! ड्डे गौतम ! " सत्तरस सागरोत्रमाई टिई पण्णत्ता " हे गौतम! गगहन्त देवनी મહાશુક્ર દેવલાકમાં ૧૭ સાગરાપમની સ્થિતિ કહી છે. કેમકે સાતમાં મહાશુકે કલ્પમાં એજ ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ કહી છે, देवलोगाओ आउक्खएणं गंगदत्ते ण भंते! देवे ताओ ગૌતમસ્વામી પ્રભુને એ પ્રમાણે પૂછે છે કે હૈ ભગવન્ ! દેવલેાકમાં જ્યારે ગગદત્ત દેવની આયુને-ક્ષય દેવભવના ક્ષય થશે ત્યારે તે ત્યાંથી ચ્યવીને કયાં જશે ? ત્યાંથી ચવીને કયાં ઉત્પન્ન થશે ? તેના ઉત્તરમાં अलु ४हे छे हे " जाव महाविदेहे वाले सिज्झिहिइ " हे गौतम! यावत् तेथेा भडाવિદેહ ક્ષેત્રમાં સિદ્ધ થશે, યુદ્ધ થશે અને મુક્ત થશે. અહિયાં યાવત્ પદથી “भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतर चयं चइता कहि गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ गोयमा !” આ પાઠના સગ્રહ થયા છે. તેના ભાવ એ છે કે ગૌતમ