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भगवती सूत्रे भंगवानाह - 'नो इणडे' इत्यादि 'नो इण समड़े' नायमर्थः समर्थः, नहि कोऽपि देवः, बाह्यपुद्गलान्, अनादाय आगमनादिकं कर्तुं शक्नोतीति । 'देवे णं भंते ! देवः खल भदन्त ! 'महड़िए जाब महासोक्खे' महर्द्धिको यावद् महासौ ख्यः, 'बाहिरए पोगले परियाहत्ता पभू आगमित्त' वाह्यान पुद्गलान् पर्यादाय प्रभुः आगन्तुम् बाह्यपुद्गलान् आदाय आगमने समर्थः किमिति प्रश्नः । भगवानाह - 'हंता पभू' हन्त मभूः समर्थः शक्नोत्येव बाह्यपुद्गलानादाय आगमनादिव्यवहारं कर्तुमित्यर्थः इति प्रथमप्रश्नः सम्मति अष्टमश्नान्वर्गवशेषमश्नान् भगवन्तं पृच्छति 'देवें णं भंते !' देवः खलु भदन्त | 'महड्डिए जाब महासोक्खें' महर्द्धिको यावद् महासौख्यः ' एवं एएणं अभिलावेगं गमित्त ' एवम् अनेन, अभिलापेन
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ऐसा यह प्रश्न किया है । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'नो इणट्ठे समट्ठे'
श! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् कोई भी देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये विना आगमनादि क्रियाको नहीं कर सकता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'देवे णं भंते ! महडिए जाव महासोक्खे' हे भदन्त | महर्द्धिक यावत् महासुख युक्त देव 'बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू आगमित्तए' बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके क्या आगमनादिरूप क्रिया कर सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'हंता, भू' हां शक्र ! ऐसा वह कर सकता है । अर्थात् बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके देख आगमनादिव्यवहार करने के लिये समर्थ हो सकता है यह प्रथम प्रश्न का उत्तर है । अब अष्ट प्रश्नान्तर्गत शेष प्रश्नों को वह भगवान् से पूछता है - 'देवे णं भंते । महड्डिए जाब महासोक्खे' हे भदन्त । जो महर्द्धिक यावत महासुखसंपन्न देव है वह ' एवं एएणं अभिलावेणं गमित्त' इसी अभिलापक अनुसार क्यों
" णो इणट्टे खमठ्ठे " डे श भ अर्थ अशमर नथी अर्थात् अर्थ | देव ખાદ્ય પુદ્દગલાને થતુણુ કર્યાં સિવાય આગમન વિગેરે ક્રિયા કરી શકત્તા નથી ढवे गौतम स्वाभी अलुने हो असा पूछे छे ! " देवे णं भंते ! महढिए जाव महासोक्खे " हे भगवन् ! महाऋद्धिवाणी यावत् भहासुभवाणी देव " बाहि रए पोग्गले परियाइत्ता पभू आगमित्तए " महारना युद्धबाने ग्रहण उरीने यागभन डिया ४री श छे ? तेना उत्तरभां अलु उडे छे " हंता पभू " હા, શત્રુ એવુ તે કરી શકે છે. અર્થાત્ ખાદ્ય પુલેને ગ્રહણ કરીને દૈવ આગમન વિગેરે વ્યવહાર કરવામાં સમય છે. આ પહેલા પ્રશ્નને ઉત્તર છે हुवे भार अनान्तर गत महीना अनी ते भगवानने पृछे छे. " देवे णं भंते ! महढिए जाव महासोक्खे " है लगवन् ! ने महर्षिः यावत् भहासुभवाने हेव छे. “ एवं एएणं अभिलावेण गमित्तए " मा सलिलाय प्रभाशे शुभवाने