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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० ११ जीवाधगाढद्वारनिरूपणम् ७०३ मवगाहो भवति, इत्यर्थः, गौतमः पृच्छति-'जत्य णं भंते ! एगे आउकाइए ओगाढे तत्थ णं केवइया पुढविकाइया ओगाढा ? ' हे भदन्त ! यत्र खलु एक: अकायिको जीवः अवगाहस्तत्र खलु कियन्तः पृथिवीकायिका अवगाहा भवन्ति ? भगवानाह-' असंखेज्जा' एकाकायिकावगाढस्थाने असंख्येयाः पृथिवीकायिका अवगाढा भवन्ति । गौतमः पृच्छति- केवइया आंउक्काइया ओगाढा ?' तत्र कियन्तः अप्कायिका अबगाढा भवन्ति ? भगवानाह-' असंखेज्जा' तत्र असंख्येय। अकायिका अवगाहा भवन्ति, 'एवं जहेर पुढ विकाइयाणं कायिक जीव, असंख्यात सूक्ष्म अकायिक जीव, असंख्यात सूक्ष्म वायुकायिक जीव और अनन्तवनस्पतिकायिक जीव अवगाढ स्थित हैं। ____ अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'जत्थ भंते! एगे आउ. काइए ओगाढे' हे भदन्त ! जहां पर एक अप्कायिक जीव अवगाढ होता है, वहां पर 'केवड्या पुढविकाइया ओगाढा' कितने पृथिवीका. यिक जीव अवगाढ होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'असंखेजा' हे गौतम ! जहां पर एक अप्कायिक जीव अवगाढ़ होता है उस स्थान पर असंख्यात पृथिवीकायिक जीव अवगाढ होते हैं। अब गौतमप्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवइया आउकाइया ओगाता' हे भदन्त ! एक अप्कायिक जीव के अवगाहस्थान में अपकायिक कितने जीव अवगाढ होते है ? उत्तर में प्रक्षु कहते हैं-'असंखेजा' यहां पर असंख्यात अप्कायिक जीव अवगाढ होते हैं । 'एवं जहेव पुढचीकाइयाणं છે, અસંખ્યાત સૂક્ષમ વાયુકાયિક છે અને અનંત વનસ્પતિકાયિક © Aq6 (स्थित) डाय छे.
। हव गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे है- 'जत्थणं भंते ! एगे आउकाइए ओगाढे" सगवन् ! स्थान ५२ मे माथि ७१ मा डाय छे, ते साना स्थान ५२ " केवइया पुढविकाइया ओगाढा ? Deal वीयि ७३ असा हाय छ ? तना उत्तर भापता महावीर प्रभु ४७ छ-" असंखेज्जा" गौतम न्यi से मयि व અવગાઢ હોય છે, ત્યાં અસંખ્યાત પૃથ્વીકાયિક જી અવગાઢ હોય છે.
गौतम स्वामीना प्रश्न-" केवइया आउकाइया ओगाढा ?' भगवन् । એક અપૂકાયિક જીવના અવગાહના સ્થાનમાં કેટલા અપ્રકાયિક છે અવગાઢ હોય છે? - महावीर प्रभुना उत्तर-" असंखेज्जा" हे गौतम ! यो मसभ्यात मयि | मादाय छ, “एव जव पुढ़वीकाइयाणं वत्तव्वया तहेव