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प्रमेयंचन्द्रिका टीका श० १३ उ०४ सू०९ द्वि० पु० स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ६६१ ___ गौतमः पृच्छति-' एगे भंते ! अद्धासमए केवइएहिं धम्मन्थिकायपएसेहि पुढे ? हे भदन्त ! एकः खलु अद्वाममयः कियद्भिः धर्मास्तिकायदेशः स्पृष्टः ? भगवानाह- सनहिं ' हे गौतम ! सतभिः धर्मास्तिकायपदेशः एकः अद्धासमयः स्पृष्टो भवति, अत्र वर्तमानसमपविशिष्ट समयक्षेत्रमध्यवर्ती परमाणुरेव अद्धासमयेन ग्रहीतव्यः, अन्यथा नद्धाप्तमयस्य सप्तभिः धर्मास्तिकायादिप्रदेशः स्पर्शनाऽनुपपत्तिः स्यात् , एवमत्र जघन्यपदामावो बोध्यः, अद्धाममयस्य मनुप्यक्षेत्रमध्यपतित्वात् , जघन्यपदस्य लोकान्ते एव सम्भवात् । सप्तभिः स्पर्शना देवम्-श्रद्धासमयविशिष्टं परमाणुद्रव्यम् एकत्र धर्मारितकाया देशेऽवगाढम् , अन्ये च तस्य ___ अप गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'एगे भंते । अद्धासमए केवइएहि धमस्थिकायपएसेहिपुढे' हे भदन्त ! एक अद्धा समय कितनेधर्मास्तिकायप्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है ? उत्तर में प्रभु कहते है'सत्ताह' हे गौतम! सात धर्मास्तिकायप्रदेशों द्वारा एक अद्भासमय स्पृष्ट होता है। यहां 'अद्धासमय' इस शब्द से वर्तमान समय विशिष्ट समय क्षेत्रमध्यवर्ती परमाणु ही गृहीत करना चाहिये। नहीं तो अद्धासमय की सात धर्मास्तिकायप्रदेशों द्वारा स्पर्शना नहीं बन सकती है। यहाँ जघन्यपद का अभाच समझना चाहिये क्योंकि अद्धासमय मनुष्यक्षेत्र मध्यवर्ती है। जघन्यपद का सद्भाव तो लोकान्त में ही है । सात धर्मास्तिकायपदेशों द्वारा अद्धासमय की स्पर्शना इस प्रकार से है-अद्धासमय विशिष्ट परमाणु द्रव्य धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश में अवगाढ है, धौस्तिकाय के दूसरे ६ प्रदेश उसकी ६ दिशाओं
गैतम स्वामी प्रश्न-" एगे भंते ! अद्धासमए केवइएहि धम्मत्यिकायपएसेहि पुढे ?" ॐ भगवन् । ४ सद्धासमय सारित:यप्रदेश पर स्पृष्ट-थाय छ?
महावीर प्रभुन। उत्तर-" सत्तहिं" गौतम | सात 1ि31य प्रदेश ६।२५ मे मदासमय र थाय छ. ही “अद्धासमय" 40 पवतमान સમયવિશિષ્ટ, સમયક્ષેત્રમધ્યવર્તી (અઢી દ્વીપના) પરમાણુ જ ગૃહીત કરવા જોઈએ, નહીં તે અપ્લાસમયની સામે ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશ વડે સ્પર્શના સંભવી શકતી નથી અહી જઘન્ય પદને અભાવ સમજ, કારણ કે અદ્ધાસમયને મનુષ્યક્ષેત્રમાં જ સદભાવ છે, જઘન્ય પદને સંદુભાવ તે કાન્તમાં જ છે. સાત ધમસ્તિકાય પ્રદેશ દ્વારા અદ્ધાસમયની સપર્શના આ પ્રકારે થાય છે-અદ્ધાસમ વિશિષ્ટ પરમાણદ્રવ્ય ધર્માસ્તિકાયના એક પ્રદેશમાં અવગાઢ