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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०४ १०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ४५ यावत् नव परमाणुपुद्गलाः एकता संहत्य नवप्रदेशिका स्कन्धो भवति, स खल्लु नवप्रदेशिका स्कन्धो भिधमानः द्विधापि त्रिधापि, चतुर्धाऽपि, पंचधापि, पोहापि, सप्तधापि अष्टधापि, नवधापि, क्रियते-भवति, तत्र 'दुहा कज्जमाणे एगयो परमाणुरोग्गले, एगयओ अट्ठपएसिए खंधे भवइ' नव प्रदेशिकः स्कन्धो द्विधा क्रियमाणः एकत:-एकमागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकत:-अपरभागे अष्टपदेशिकः स्कन्धो भवति, ‘एवं एकेक संचारेंतेहिं जाव' एवं-पूर्वोक्तरीत्या एकैकं "प्रत्येकम् संचारयद्भिः-अभिलापक्रमेण प्रतिपादयद्भिः यावत्-पूर्वोक्तं सर्व संग्राहथम, 'अहवा एगयो चउप्पएसिए खंधे, एगयो पंचपएसिए खंधे भैया' अथवा एकत:-एकभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, एकन:-अपरभागे पश्च. • हे गौतम! 'जाव नवविहा कज्जति' नव परमाणु पुग्गल जय एकरूप में होते हैं-तब उनसे नव प्रदेशी,स्कन्ध होता है वह नव प्रदेशिक स्कन्ध जय विभक्त होता है-तब उसके दो.भी, तीन भी, चार भी, पांच भी छहभी. सातभी, आठ भी और नव भी विभाग हो सकते हैं-'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ अपएसिए खधे भवई' जय 'यह नौ पदेशिक स्कन्धं दो भागों में विभक्त किया जाता है तब एक भाग में पराणु युगद्ल होता है और दूसरे भाग में अष्ट प्रदेशिक स्कन्ध. होता है एवं एक्के संचारेंतेहिं जाच अहवा-एगयओ चउप्पएसिए खधे; एगयो पंचपएसिए ख़धे भवइ" इस प्रकार से यहां अभिलाप क्रम से एक एक प्रदेश का संचार 'अथवा-एक भाग में चतुष्पदेशिक स्कन्ध होता है और दूसरे भाग में पंच प्रदेशिक स्कन्ध होता है., इस , महावीर प्रसुन उत्तर- गोयमा । ".. गौतम ! जाव • नवविहा कज्जति" नव-५२मा पुगal rयारे ४३५ यायचे, त्यारे न३ प्रशि અંધ ઉત્પન્ન થાય છે. તે નવ પ્રદેશિક સ્કંધ જ્યારે વિભક્ત થાય છે, ત્યારે તેને બે, ત્રણે, ચાર, પાંચ છ, સાત, આઠ અથવા નવ વિભાગે થઈ જાય छ. " दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ अदुप्पएसिएं खंधे भवइ "यारे आमटशि धना मे विला' ४२वामा माव छे, त्यारे એક વિભાગમાં એક પરમાણુ યુગલ હોય છે અને બીજા વિભાગમાં એક मशि : २४य छ " एवं एकेकं संचारे तेहिं जाव अहवा-एगयो चउप्पएखिए, खंधे, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ " AL Rना ममिलाप ક્રમ અનુસાર એક એક પ્રદેશની વૃદ્ધિ કરીને નીચેના વિકલ્પ પર્યન્તના બધા વિનું કથન થવું જોઈએ-“ અથવા એક વિભાગમાં. ચાર પ્રદેશિક એક સકંધ અને બીજા વિભાગમાં એક પાંચ પ્રાદેશિક સ્કંધ હોય છે.