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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२४०४१०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् खंधे भाई' हे गौतम ! अष्टौ परमाणुपुद्गलाः एकतः संहत्य अष्टप्रदेशिका स्कन्धो भवति, 'जाव दुहा कज्जमाणे एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो सत्त पएसिए खंधे भवई' यावत् सो अष्ट प्रदेशिका स्कन्धो भिद्यमानो द्विधापि, त्रिधापि, चतु. धर्धापि, पञ्चधापि, पोहापि, सप्तवापि, अष्टधापि भवति, तत्र द्विधा क्रियमाण: एकत:-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकत:-अपरभागे सप्तमदेशिकः स्कन्धो भाति, 'अहवा एगयओ दुपएसिए खंधे, एगयओ उपएसिए खंधे भवइ' अथवा एकता-एकभागे द्विमदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः-अपरभागे षट्पदेशिका स्कन्धो भाति, 'अहवा एगयो विधएसिए खंधे, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ' अथवा एकतः-एकभागे त्रिप्रदेशिका स्कन्धो भवति, एकता-अपरभागे लपरमाणुओं के मेल से आठ प्रदेशोंवाला एक.स्कंध होता है-'जाव दुहा कज्जमाणे परमाणुशेगले, एगयो सत्त पएसिए खंधे भवह' जब इस अष्टप्रदेशिक स्कंध के विभाग किये जाते हैं-तब इसके दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, और आठ विभागतक भी होते हैं जब इसे दो प्रकार से विभाग किया जाता है-तब एक भाग में एक परमाणुपुद्गल होता है और दूसरे भाग में सप्तप्रदेशिक स्कंध होता है। 'अहवा-एगयओ दुप्पएसिए खंधे एगयओ छप्पएसिए खंधे भवह' अथवा-एक भाग में द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता है और दूसरे भाग में छह प्रदेशिक स्कन्ध होता है। 'अहवा-एगयओ तिप्पएसिए खंधे एगयओ पंच पएसिए खंधे भवह.' अथवा-एक भाग में एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है, और दूसरे भागमें एक पंचप्रदेशिक स्कंध होता है। भवइ" मा ५२मा पुगतान में भी साथै सयोग- पाथी माह शिमे २४५ मन छ. " जाव दुहा कज्जमाणे परमाणुपोग्गले, एगयओ सत्त पएसिए खधे भवइ"' न्यारे मा अष्टप्रशि: २७°धना विमा ४२वामा આવે છે, ત્યારે તે બે, ત્રણ, ચાર, પાંચ, છ, સાત અથવા આઠ વિભાગમાં વિભક્ત થઈ જાય છે. જ્યારે તેના બે વિભાગ કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક વિભાગમાં એક પરમાણુ યુગલ હોય છે અને બીજે વિભાગ સસપ્રદેશિક २४ ३५ डाय छे. " अहवा-एगयओ दुप्पएसिए खंघे, एगएओ छप्पएसिए खंधे भव" मया से सास दिशि २४ ३५ डाय छ भने जीने भाछ प्रहशि २४३५ य छे. " अहवा एगयओ तिप्पपसिए खंघे, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ" भयवा से भाग निशि : २४५ ३५ डाय छ भने मीन साग पांय प्रशि६ २४ ३५ ३य छे. "महवा दो चउपए