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________________ भगवतीसूत्रे ५८० 2 एवं तेषु पञ्चम्याः पृथिव्याः नरकेषु नैरयिकाश्चतुर्थ्याः पृथिव्याः नैरविक्रेभ्यो महाकर्मराः, महाक्रियवराः, महस्रवतराः, महावेदनतराश्च भवन्ति, किन्तु नो तथा अल्प कर्मतराः, अल्पक्रियतराः, अल्पास्रवतराः, अल्पवेदनतराय भवन्ति, यथा चतुर्थ्याः पृथिव्याः नैरयिकाः अलाकर्मतराः, अल्पक्रियतराः, अल्पावतराः, अल्पवेदनतराश्च भवन्ति न तथेति भावः । एवमेत्र ते पञ्चम्याः पृथिव्या नैरयिकाः अल्पर्द्धिकतराः, अल्पद्युतिकतराश्च भवन्ति, नो तथा महर्द्धिकतराः, महाद्युतिकतरा भवन्ति यथा चतुर्थ्याः पृथिव्याः नैरयिकाः महर्द्धिकतराः, महाद्युतिकतराय भवन्ति न तथैते, इत्यादि रीत्या चतुर्थ्याः पङ्कमभायाः पृथिव्या नरकादिविषये, प्रकार पंचमी पृथिवी के उन नरकों में नैरयिक चतुर्थपृथिवी के नैरयिकों की अपेक्षा से महाकमंतर, महान्क्रियातर, महास्रवतर और महावेदनतर हैं, अल्पतरकर्मचाले, अल्पतरक्रियाचाळे, अल्पतर आसवाले और अल्पतर वेदनवाले नहीं है, जैसे कि चतुर्वपृथिवी के नरक इनकी अपेक्षा महाप्रवेशनतर, आकीर्णतर, आकुलर और नोदनतर कहे गये हैं । इस प्रकार वे पंचमी पृथिवी के उन नरकों में नैरकि, चतुर्थपृथिवी के नैरयिकों की अपेक्षा से महाकमंतर, महाक्रियातर, महास्रवतर और महावेदनतर हैं, अल्पतर कर्मवाले, अल्पतरक्रियांवाले, अल्पतर आस्रववाले और अल्पतरवेदनवाले नहीं है, जैसे कि चतुर्थपृथिवी के नैरचिक अल्पतर कर्मचाले, अल्पनर क्रियावाले अल्पतर वाले और अल्पतर वेदनावाले होते हैं। इसी प्रकार से वे पंचमी पृथिवी के नैरयिक जैसे अल्पऋद्धिवाले हैं, और अल्पधुतिवाले है, वैसे वे महाऋद्धिवाले और महाद्युतिवाले नहीं हैं, जैसे चतुर्थपृथिवी के नैरयिक महाऋद्धिवाले और महायुतिवाले इनकी अपेक्षा होते हैं । इसी रीति के अनुसार चतुर्थ पंकप्रभापृथिवी के नरकादि के विषय में, એજ પ્રમાણે ચેાથી પૃથ્વીના નારકા કરતાં પાંચમી પૃથ્વીના નારા મહાકમાઁતર, મહાક્રિયાતર, મહાતર અને મહાવેદનતર છે. તેએ ચેાથી પપ્ર ભાના નારકા જેટલા અલ્પકતર, અપક્રિયાવાળા, અલ્પમસવવાળા અને અલ્પવેદનાવાળા નથી. એજ પ્રમાણે પાંચમી પૃથ્વીના નારકા જેવી અલ્પઋદ્ધિવાળા અને અને અપવ્રુતિવાળા છે, એવી અલ્પઋદ્ધિ અને અલ્પવ્રુતિવાળા ચેાથી પૃથ્વીના નારકા નથી ચેાથી પંકપ્રક્ષાના નારા પાંચમી ધૂમપ્રભાના નારકા કરતાં મહાઋદ્ધિવાળા અને મહાદ્યુતિવાળા છે. એજ પ્રમાણે ચેાથી પંકપ્રભાપૃથ્વીના નરકાવાસાદિના વિષયમાં, ત્રીજી વાલુકાપ્રભાના નર
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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