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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० २ सू० १ देवविशेषनिरूपणम् ५५७ विस्तृतपु पश्चानुत्तरविमानेषु मिथ्यादृष्टयः, सम्यग्मिथ्याष्टयश्च न भण्यन्ते न उपपद्यन्ते, न व्यवन्ति, न प्रज्ञप्ताः सन्तीत्यर्थः अनुत्तरनिमानेषु तेपामसंभवात् , शेष तदेव-पूर्वोक्तवदेव, अवसेयम्, गौतमः पृच्छति-'से पूर्ण भंते ! कण्हलेसे नील जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु देवेमु उववज्जइ' हे भदन्त ! तत् अथ, नूनं खल कृष्णलेश्यो नील यावत् नीललेश्यः, कापोतलेक्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या कृष्णादिशुक्ललेश्यावान् भूत्वा किं कृष्णलेश्येषु देवेषु उपपद्यते ? भगवानाह-'हंता गोयमा! एवं जहेव नेरइएसु पढमे उद्देसए तदेव भाणियव्वं' हे गौतम ! हन्त-सत्यम् , एवं-पूर्वोक्तरीत्या यथैव नैरपिके पु अौष त्रयोदशशतकस्य योजन विस्तारवाले पांच अनुत्तर विमानों में मिश्रष्टि एवं मिथ्याष्टि नहीं कहना चाहिये । क्योंकि इन दोनों का न यहां उत्पाद होता है, न यहां उतना होनी है और न इनकी यहां सत्ता ही रहती है। यहां तो गृहीतसम्यग्दर्शनवाले जीव ही उत्पन्न होते हैं इसलिथै इनके सम्बन्ध में ही उत्पातादि विषयक तीन आलापक कहे गये हैं। बाकी का और सब कथन पूर्वोक्तानुसार ही है। अब गौतमस्वामी प्रसु से ऐसा पूछते हैं-'से पूर्ण भंते ! कपहलेस्ले नील जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेतु देवेलु उववज्जई' हे भदन्त ! कृष्गलेश्यावाला जीव, नीललेश्यावाला, यावत्-कापोतलेघावाला, तेजोलेश्यावाला, पद्मने शाक्षाला शुक्ललेश्यावाला होकर के क्या कृष्णलेश्यावाले देवों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हता, गोयमा! एवं जहेव नेरइएस्लु पहमे उद्देसए तहेव भाणियन्ध' हे गौतम ! जैसा नैरपिकों के विषय में तेरहवें शतक के प्रथम આલાપકોમાં મિથ્યાષ્ટિએ અને સમિદષ્ટિઓનું કથન કરવુ જોઈએ નહીં, કારણ કે તે બન્નેને ત્યાં ઉત્પાદ પણ થતું નથી, તેમનું ત્યાંથી ચ્યવન પણ થતું નથી અને ત્યાં તેમનું અસ્તિત્વ પણ હોતું નથી અનુત્તર વિમાતેમાં તે ગૃહીત સમ્યગ દર્શનવાળા છ જ ઉત્પન્ન થાય છે, તેથી તેમના સંબંધમાં જ ઉત્પાતાદિ વિષયક ત્રણ આલાપક કહેવામાં આવ્યા છે. બાકીનું સમસ્ત કથન પૂકત કથન અનુસાર જ સમજવું.
गौतम स्वाभाना प्रश्न-" से गूग भंते ! कण्हलेसे नील जाव सुक्छेस्से भविचा कण्हलेस्सेस देवेस उववज्जइ" 8 गन् । सश्यावा , નીલશ્યિવાળ, કાપતલેશ્યાવાળ, તેજલેશ્યાવાળો, પલેશ્યાવાળે અને શુકલેશ્યાવાળે થઈને શું કૃષ્ણવેશ્યાવાળા દેવોમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે
महावीर प्रभुने। त्तर-"हंता गोयमा! एवं जहेव नेरइएसु पढमे उद्दे. खए तदेव भाणियन " गौतम। तेरभां शन पर देशमा ना२.