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प्रमेयवन्द्रिका टीका २० १२ उ०४ सू०१ परमाणुयुद्गलनिरूपणम् ३१ न्यन्ते, एकतः संहत्य किं स्वरूपं वस्तु भवति ? इति पृच्छा । भगवानाइ-'गोयमा! छप्पए लिए खंधे भवइ' हे गौतम ! षट्परमाणुपुद्गलाः संहत्य पट्मदेशिकः स्कन्धो भवति, ‘से भिज्जमाणे दुहावि, तिहावि, जाव छबिहावि कज्जइ ' स पट्मदेशिकः स्कन्धो भिधमानो द्विधापि, त्रिधापि यावत्-चतुर्धापि, पञ्चधापि, पोढापि क्रियते, तत्र 'दुहाकन्जमाणे एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो पंचपएसिए खंधे भाइ' द्विधा क्रियमाणः, एकत:-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकत:-अपरभागे पश्चादेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयो चउपएसिए खंधे भवइ' अथवा एकतः-एकभागे, द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, ___अ गौतम प्रभु ले ऐसा पूछते हैं-' छन्भंते ! परमाणु पोग्गला पुच्छा' हे भदन्त ! जब छह पुलपरमाणु आपस में मिलते हैं-तष उनके मिलाप से क्या चीज उत्पन्न होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा!' हे गौतम ! 'छप्पएसिए खंधे भवइ ' जब छह पुद्गल परमाणु आपस में मिलते हैं-तष उनके मिलाप से छह प्रदेशी स्कन्ध उत्पन्न होता है। से भिज्जमाणे दुहा वि, लिहा वि, जाव छव्यिहा वि कज्जइ' जय यह छह प्रदेशी स्कंध भेद को प्राप्त होता है-तब इसके दो भी, तीन भी, चार भी, पांच भी और छह भी विभाग हो सकते हैं-इनमें जब इसके 'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयो पंचपएसिए खंधे भवइ ' दो विभाग किये जाते हैं-तय एक विभाग एक पुद्गल परमाणुरूप होता है और दमरा विभाग पांचप्रदेशिक स्कन्धरूप होता है । ' अहवा एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ चउपएसिए
गौतम स्वामीना प्रश्न-" छन्भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा" भगवन् ! જ્યારે છ પરમાણુ યુદ્ધ એક બીજા સાથે એકત્રિત થાય છે, ત્યારે તેમના સાગથી કઈ વસ્તુ ઉત્પન્ન થાય છે?
महावीर प्रभुना उत्तर-" गोयमा !" गीतम! “छपएसिए खंधे भवह" यारे छ पुस५२भारासा मे भी साथै सयाम पामे छे, त्यारे तमना सयागने दी छ प्रशि में सत्पन्न थाय छ “से भिन्जमाणे दुहा घि, तिहा वि जाब बिहा वि कज्जा" न्यारे मा ७ प्रशि સ્ક ધ વિભક્ત થઈ જાય છે, ત્યારે તેના બે, ત્રશુ, ચાર, પ્રાંચ, અથવા છ विभाग ८६ छ. “ दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ पंचपएसिए खंधे भव" न्यारे तना से विमाn is nय छे, त्यारे में। વિભાગ એક પુલ પરમાણુ રૂપ અને બીજે વિભાગ પાંચ પ્રદેશિક એક २७°५ ३५ सभी श छ ‘अहवा' मथ। " एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एग