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________________ भगदतीमु २६ द्विधा क्रियमाणः एकः परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः - अपरभागे द्विपदेशिकः कन्धो भवति 'ति फज्नमाणे तिष्णि परमाणुयोग्गला भवति' त्रिमदेशिकः स्कन्धः त्रिधा क्रियमाणः त्रयः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, गौतमः पृच्छति - 'चचारि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नति जाव पुच्छा' हे भदन्त ! चत्वारः परमाणुपुद्गलाः एकतः संद्दन्यन्ते - संता भवन्ति, संघी भवन्तीत्यर्थः यावत्- संहत्यसघीभूय, किं स्वरूपं वस्तु भवति ? इति पृच्छा, भगवानाह - गोयमा । चउप्पर सिए खंधे भवइ ' हे गौतम! चत्वारः परमाणुपुद्गाः संहृत्य - चतुष्पदेशिकः स्कन्धो खंधे भव' जब इसके दो विभाग होते हैं-तब एक विभाग एक परमाणु उद्गलरूप होता है और दूसरा विभाग हिदेशिक स्वन्प्रकरूप होता है। 'तिहा कज्जमाणे तिष्णि परमाणु पोग्गला भवंति ' जय यह त्रिप्रदे शिक स्कंध तीन विभागों में विभक्त किया जाता है तब तीन पुल परमाणुरूप अर्थात् एक पुल परमाणुरूप तीन विभाग इस के हो जाते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' चत्तारि भंते ! परमाणुपोग्गला एमओ साहन्नति, जाव पुच्छा' हे भदन्त | जय चार पुद्गल परमाणु आपस में एकत्रित होते हैं- एकरूप से मिल जाते हैं तब उनसे क्या वस्तु उत्पन्न होती है- अर्थात् चार पहल परमाणुओं की एकता में जो स्कंध उत्पन्न होता है - उसका क्या नाम है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयना ! उप्पएसिए खंधे भवह' हे गौतम ! चार पुगग परमाणु आपस में जब मिलते हैं - तब उनसे एक चार प्रदेश वाला स्कंध उत्पन्न दुपसिe खंधे भवइ ” જ્યારે તેના બે વિશાળ થાય છે, ત્યારે એક વિભાગ એક પરમાણુપુગલ રૂપ અને ખીન્ને વિભાગ દ્વિપ્રદેશિક ધરૂપ બને છે. 66 तिहा कज्जमाणे तिष्णि परमाणुपोग्गला भवंति " क्यारे ते त्रिअदेशि ધને ત્રણ વિભાગમાં વિભકત કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પુદ્ગલપરમાણુ રૂપ ત્રણ વિભાગેામાં તે વકત થઇ જાય છે. गौतभ स्वाभीने। अश्न– “ चत्तारि भंते ! परमाणुपोगला एयओ साहण्णंति, जात्र पुच्छा " हे भगवन् ! न्यारे परमाणु युद्धसो मे भीन्न साझे એકત્રિત થાય છે, ત્યારે તેમના સંચાગથી શું ઉત્પન્ન થાય છે? એટલે ચાર પુદ્ગલપરમાણુએ એકત્ર થવાથી જે સ્કંધ ઉત્પન્ન થાય છે. તેનું નામ શું છે? भडावीर अलुना उत्तर- " गोयमा उपसिए खंधे भवइ " ३ गौतम ! જ્યારે ચાર પરમાણુ પુèા અરસ્પરસની સાથે સચૈાગ પામે છે, ત્યારે તેમના સચૈાગથી એક ચાર પ્રદેશિક ક્ધ ઉત્પન્ન થાય છે. ני
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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