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भगवतीसूत्रे
समवसृतः, धर्मकथां श्रोतुं पर्पत् निर्गच्छति, धर्मकथां श्रुत्वा प्रतिगता पर्पत्, ततो विनयेन शुश्रूषमाणो गौतमः प्राञ्जलिपुटः पर्युपासीनः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण, अवादीत् - ' कइ णं भंते! पुढवीओ पण्णत्ताओ ?' हे भदन्त ! कति खलु पृथिव्यः - प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - 'गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम! सप्त पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा= रयणप्रभा जान अहे सतमा' तद्यथा - रत्नप्रमा, यावत्-शर्करा - प्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कमभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, अधः सप्तमी, गौतमः पृच्छति'इमी से णं भंते । रयणप्पभाए पुढवीए केवइया निरयावास सय सहरसा पण्णत्ता ? ' भदन्त ! अखल रत्नप्रभायां पृथिव्यां कियन्ति निरयावासशतसहस्राणि - राजगृह नगर में यावत्- महावीर स्वामी पधारे धर्मकथा को सुनने के -लिये परिषदा निकली और धर्मकथा सुनकर फिर वह अपने २ स्थान पर चली गई तब विनय से धर्मश्रवणाभिलाषी गौतम ने दोनों हाथ जोड़कर बड़े विनय के साथ प्रभु से इस प्रकार पूछा - ' कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त । कितनी पृथिवियां कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा ! ' हे गौतम! ' सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओं' पृथिवियां खात कही हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं- 'रयण पंभा जाव अहे सत्ता' रत्नप्रभा यावत् शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और अधः सप्तमी (तमस्तमंप्रभा ) ।
अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' इमी से णं भंते! रयणभाए पुढंवीए केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता' हे भदन्त ! નગરમાં મહાવીર પ્રભુ પધાર્યાં ધમ કથા સાંભળવાને પરિષદ નીકળી ધર્મકથા સાંભળીને પરિષદ વિખરાઈ ગઈ ત્યાર બાદ ધમ તત્ત્વને સમજવાની અભિલાષાવાળા ગૌતમ સ્વામીએ બન્ને હાથ જોડીને ખૂબ જ વિનયપૂર્વક મહાવીર' असुने या प्रमाणे पूछयु - " कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ?" हे भगवन् ! પૃથ્વીએ કેટલી કહી છે ?
भडावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ " हे गौतम! पृथ्वीमा सात ईडी छे. " तंजहा " तेभना नाम नीचे अमाये - " रयणter जाव अहे सत्तमा ” (१) रत्नअला, (२) शरायला, (3) वालुअला, (४) ५५प्रला, (५) धूमअला, (६) तभः अला भने (७) अधः ससभी (तभस्तभयला)
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गौतम स्वाभीने। प्रश्न- “ इमीसे ण भंते! रयणप्पभाए पुंढवीए केवइया निरयावास सय सहस्वा पण्णत्ता ?" हे भगवन् ! या रत्नप्रभा पृथ्वीमा टा લાખ નરકાવાસે કહ્યા છે?