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भगवती सूत्रे
प्रमाणिकतया स्वीकुर्वन्नाह - ' सेवं भंते ! से भंते ! ति जाव विहरइ ' हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सर्वं सत्यमेव, हे भदन्त । तदेदं भवदुक्तं सर्व सत्यमेवेति यावत्ब्रुवन् विहरति- तिष्ठति ॥ सू० ३ ॥
॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगवल्लभ - प्रसिद्धवाचक पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापकप्रविशुद्ध गद्यपद्यनेकग्रन्थनिर्मापक वादिमानमर्दक श्री शाहू छत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त'जैनाचार्य ' पदभूपित - कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मंदिवाकर - पूज्य श्री घासीलालनविविरचितायां श्री " भगवती सूत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां द्वादशशत के दशमोदेशकः समाप्तः ॥ १२-१०॥
॥ द्वादशशतकं समाप्तम् ॥
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जान लेना चाहिये । अन्त में गौतम भगवान् के वाक्य को प्रामाणिक रूप से स्वीकार करते हुए कहते हैं कि 'सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ' हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है, हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है ऐसा कह कर वे यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये ॥ सू०३ ॥
जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराज कृत " भगवती सूत्र " की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्या के बारहवें शतक का ॥ दशवां उद्देशक समाप्त १२-१० ॥
॥ बारहवां शतक संपूर्ण हुआ ॥ १२ ॥
सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ " हे भगवन् ! आपनी वात सर्वथा सत्य छे. હે ભગવન્ ! આપે જે કહ્યું તે સ`થા સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણુ! નમસ્કાર કરીને તે તેમને સ્થાને વિરાજમાન થઈ ગયા. પ્રસૂ॰ કા જૈનાચાય જૈનધમ દિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્ર”ની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના ખારમાં શતકના દસમા ઉદ્દેશ સમાસ ૫૧૨-૧૦!!
॥ भारभु शत सभास ॥