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। प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० १ आत्मस्वरूपनिरूपणम् . ३६१___ कसायाया तस्स दवियाया?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य: द्रव्यात्मा-द्रव्यात्मत्वं भवति तस्य किं कपायात्मा-कषायात्मत्वं भवति ? एवं यस्य जीवस्य कपायात्मत्वं भाति, तस्य किं द्रव्यात्मत्वं भवति ? भगवानाह-'गोयमा। जस्स दवियाया तस्स कसायाया सिय अस्थि सिय नत्यि' हे गौतम ! यस्य जीवस्य द्रव्यात्मत्वं भवति तस्य कपायात्मत्वं स्यात् अस्ति-कदाचिदस्ति सकपायावस्थायाम्, स्यानास्ति-कदाचिन्नास्ति क्षीणोपशान्तकपायावस्थायाम्, 'जस्स पुण जस्स कसायाया, तस्स दर्वियाया' हे भदन्त ! जिस जीव के द्रव्यात्मा होता है-अर्थात् जिस जीव को आत्मा द्रव्यात्माल्प है-उसका वह आत्मा क्या कपायात्मारूप होता है ? तात्पर्य-पूछने का यह है कि जिस जीव में द्रव्यात्मा रहता है वहां क्या कषायात्मा होता है या नहीं होता है ? अथवा-जहां कषायात्मा होता है, वहां द्रव्यात्मा होता है, या नहीं होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा । जस्स द्वि: याया तस्स कसायाया सिय अस्थि सिय नत्यि' हे गौतम ! जहां द्रव्यास्मा रहती है वहां कषायात्मता रहती ही हो ऐसा नियम नहीं है-कषायात्मता रहे भी और न भी रहे-द्रव्यात्मता के साथ इस प्रकार से कषायात्मता की भजना है भजना का कारण यह है कि-जीव जय क्षीण कषा, यावस्था चाला या उपशान्तकषायावस्थावाला होता है उस समय उसकी द्रव्यात्मता के साथ कषायात्मतो का अवस्थान नहीं होता है, और जब यह कषायावस्थोपन्न होता है तय द्रव्यात्मता के साथ कषायात्मता
આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમસ્વામી મહાવીર પ્રભુને એવો પ્રશ્ન पूछे छे ।-" जस्स णं भंते ! दवियाया-तस्स कसायाया, जरस कसायाया, तस्स दवियाया?" भगवन् । २ नमात्मा द्रव्यात्मा ३५ डाय छ'ते જીવને તે આત્મા કપાયાત્મા રૂપ હોય છે ખરે? આ પ્રશ્નનું તાત્પર્ય એ છે કે જે જીવમાં દ્રયાત્મા હોય છે, ત્યાં શું કષાયાત્મા પણ હોય છે અને જે જીવમાં કપાયાત્મા હોય છે, તે જીવમાં શું દ્રવ્યાત્મા પણ હોય છે ખરો?
महावीर प्रसुना उत्तर-"गोयमा! जस्स दवियाया तस्स कसायाया सिय अस्थि, सिय नथि" गौतम! या द्रव्यात्मता रखता डाय, त्या पाया ભતા પણ રહેતું જ હોય છે, એ નિયમ નથી કપાયામતા રહે પણ ખરી અને ન પણ રહે આ પ્રકારે દ્રવ્યાત્મતાની સાથે કષાયાત્મતાની ભજના (સદ્દભાવ અથવા અભાવ રૂપ વિકલ્પ) સમજવી જ્યારે જીવ ક્ષીણ કષાયા, વસ્થાવાળે અથવા ઉપશાન્ત કષાયાવસ્થાવાળો હોય છે, ત્યારે તેના દ્વવ્યા
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