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भगवतीसूत्रे प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-दवियाया१, कसायाया२, जोगाया३, उब जोगाया४, णाणाया५, दसणाया६, चरित्ताया७, वीरियाया८, तद्यथा-द्रव्यात्मा१, कषायात्मार, योगात्मा३, उपयोगात्मा४, ज्ञानात्मा', दर्शनात्मा६, चारित्रात्मा७, वीर्यात्मा८, च। तत्र अतति सततं गच्छति नानावि शान् अपरापरान् स्वपरपर्यायानिति आत्मा, अथवा ये ये गत्पर्था स्ते ते ज्ञानार्था इतिन्यायेन अत् धातो गत्यर्थत्वेन ज्ञानार्थत्वात्-अतति-सततमवगच्छति उपयोगलक्षणवादित्यात्मा, तस्य चोपयोगलक्षण' वात्सामान्येनै कविधत्वेऽप्युपाधिभेदान् अष्टविधत्वमवसेयम्, तत्र द्रव्यं-त्रिकालानुगामिगौणीकृत कषायादि पर्याय, तद्रूत आत्मा द्रव्यात्मा सर्वेषां जीवानाम्', आत्मा आठ प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' वह इस प्रकार से है१. दवियाया, २ कसायाया, ३ जोगाया ४ उवजोगाया, ५ णाणोया; ६ दंसणाया, ७ चरित्ताया, ८ वीरियाया' द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चरित्रात्मा और वीर्यात्मा जो निरन्नर अपरापर पर्याप को-स्वपर्यायल्प-ज्ञानादिक नानाप्रकार के गुणों को प्राप्त करता रहता है, अथवा-गत्यर्थक जितने भी धातु होते हैं वे सब ज्ञानार्थक होते हैं-इस नियम के अनुसार गत्यर्थक अत् धातु का अर्थ ज्ञान होता है-सो इस व्युत्पत्ति के बल से उपयोग लक्षण वाला होने से यह आत्मा निरन्तर पदार्थों को जानता रहता है इस प्रकार यह आत्मा यद्यपि इस सामान्यरूप उपयोग लक्षण से एक ही प्रकार का है परन्तु फिर भी उपाधि के भेद से यह आठ प्रकार का कह दिया गया है । जिस आत्मा में जो कि त्रिकालगामी है, जब कषा: प्रमाणे छ-"दवियाया, कसायाया, जोगाया, उवजोगाया, णाणाया, देसणाया, चरित्ताया, वीरियाया" (१) यात्मा, (२) पायात्मा, (3) योगामी, (४) उपयोगात्मा, (५) ज्ञानात्मा, (6) शनात्मा, (७) शास्त्रिात्मा मन (८) વર્યાત્મા. જે નિરંતર અપા૫ર પર્યાયને–વપર પર્યાય રૂપ જ્ઞાનાદિક વિવિધ પ્રકારના ગુને-પ્રાપ્ત કરતું રહે છે, એ આત્માને સમજવું જોઈએ અથવા–ગતિ અર્થવાચક જેટલા ધાતુઓ છે, તે બધા ધાતુઓ જ્ઞાનાર્થક डाय छे, नियमानुसार प्रत्यर्थ"अत्" घातुन अर्थ 'शान' थाय छे. આ વ્યુત્પત્તિ અનુસાર આત્મા ઉપયોગ લક્ષણવાળ હોવાને કારણે પદાર્થોને નિરંતર જાણતે રહે છે. આ સામાન્ય ઉપગ લક્ષણની અપેક્ષાએ તે આત્મા એક જ પ્રકાર છે, પરંતુ ઉપાધિના ભેદની અપેક્ષા તેને આઠ પ્રકારને अपामा मान्या छ. शिवानी in Hindi