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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ९ सू०२ देवोत्पत्तिनिरूपणम् ३०६ सर्वार्थसिद्धदेवेभ्य आगत्य भव्यद्रव्यदेवा उपपद्यन्ते इति भावः। गौतमः पृच्छति'नरदेवा गं भंते ! कोहितो उववज्जति ? कि नेरइएहितो० ? पुच्छा' हे भदन्त ! नरदेवाः खल्ल केभ्य आगत्य उपपद्यन्ते ? कि नायिकेभ्य भागत्य उपपद्यन्ते ? किं वा तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते ? किं वा मनुष्येभ्य आगत्य उत्पधन्ते ? किं वा देवेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते ? इति पृच्छा, भगवानाह'गोयमा। नेरइएहितो वि, उववज्नंति, णो तिरिक्खजोणिएहितो, णो मणुस्सेहितो, देवेहितो वि उववज्जति' हे गौतम ! नरदेवाः खलु 'नैरपिकेभ्योऽपि आगत्य उपपधन्ते, किन्तु नो तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्य नरदेवाः उपपद्यन्ते, नो वा मनुष्येभ्य आगत्य ते उपपद्यन्ते, अथ च देवेभ्योऽपि देव उत्पन्न हो जाते हैं, सर्वार्थसिद्ध के देवों में से आकरके जीव भव्यद्रव्यदेवरूप से उत्पन्न नहीं होता है, ऐसा कहा गया है। • अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'नरदेवा णं भंते ! कओ. "हिंतो उवधज्जति' हे भदन्त ! नरदेव कहां से आकरके उत्पन्न होता है ? 'किं नेरइएहितो पुच्छा' क्या नैरयिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? किंवा तिर्थग्योनिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम।' नेरहएहितो वि उववज्जति, णो तिरिक्खजोणिएहितो, णो मणुस्सेहितो, देवहितो विउवधति ' नरदेव नैरयिकों में से तथा मनुष्यो में से आकर नरदेव रूप से उत्पन्न नहीं होते, अब इसी बात को विशेषरूपसे जानने દેશમાંથી આવીને) જીવ ભવ્યદ્રવ્યદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થઈ જાય છે, પરંતુ સર્વાર્થસિદ્ધ અનુત્તર વિમાનના દેવમાંથી આવીને જીવ ભવ્યદ્રવ્યદેવ ઉત્પન્ન થતું નથી. . गौतम स्वामीना प्रश्न-"नरदेवाणं भंते । कमोहितो उपवति?". समपन् ! यांथी मावीर नरहे ३२ ५न्न थ छे ?" किं नेरइएहितो० पुच्छा"शु नामांथी, तिय यामाथी, है मनुष्यामाथी माथी આવીને જીવ નરદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થઈ જાય છે? महावीर प्रभुना अत्तर-" गोयमा?" गौतम ! " नेरइएहितो वि, उववति, णो तिरिक्ख जोणिएहितो, णो मणुस्से हितो, देवेहि तो वि ववज्जति" નારકમાથી આવીને પણ નરદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે, દેવામાંથી આવીને પણ નરદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે, પરંતુ તિયામથિી તથા મનુષ્યોમાંથી આવીને નરદેવ રૂપે ઉત્પન થતા નથી આ વાતને વિશેષ રૂપે oryरान भाटे गौतम स्वामी मा प्रमाणु प पूछे छे-"जइ नरइएहितो
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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