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________________ श्री वीतरागाय नमः , नैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य-श्री-घासीलालप्रतिविरचितया प्रमेयचन्द्रिका . ख्यया व्याख्यया समलवृतं व्याख्याप्रज्ञप्त्यपरनामकम् । . ॥श्री-भगवतीसूत्रम् ॥ __. (दशमो भागः) . . . अथ द्वादशशतकस्यं चतुर्थोदेशकः मारभ्यते ....... द्वादशशतके चतुर्थोद्देशकस्य संक्षिप्तविषयवर्णनम् .. . . - परमाणुद्वयस्य एकतया सङ्घीभूतत्वे 'आकारमरूपणम् , एवमेव त्रिचतुः पश्चषट्सप्ताष्टनवदशसंख्यातासंख्यातानन्तपरमाणनामपि एकतया सिझीभूतत्वे भाकारमरूपणंच, तदनन्तरम् अनन्तानन्तपुद्गलपरावर्तमरूपणम् , पुद्गलपरावर्त... घारहवें शतकाके चौथे उद्देशेका प्रारंभ__ इस. बारहवें शतक के इस चतुर्थ उद्देशक मे जो विषय कहा गया है उसका विवरण संक्षेप से इस प्रकार है- .. . : दो परमाणुओं के आपस में मिलने पर जोदयंणुक रूप स्कन्ध होता है उसके आकार की प्ररूपणा इसी प्रकार से तीन परमाणुओं के आपस में मिलने पर, चार पांच, छह, सात, आठ, नौ, दश, संख्यात, असंख्यात और अनन्त परमाणुओं के आपस में मिलने पर ज्यणुका: दिरूप स्कन्ध होते हैं उनके आकारों की प्ररूपणा अनन्तानन्त पुनल ... .. मारमा शताना याथा शान मारमा આ ચેથા ઉદ્દેશમાં જે વિષયનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે તેને क्षिस, सोश नाय प्रमाणे छे. .... , , . . . . . બે પરમાણુઓના સચરાથી જે બે અણુવા અકલ્પ બને છે તેના આકારની પ્રરૂપણા એજ પ્રમાણે ત્રણ પરમાણુઓના સાગથી બનતા ત્રિ६४पना, यार,..पाय, भात, मा, नकइस, भ्यात, अंशयात અને અનંત પરમાણુઓના પરસ્પરના સગથી બનતા ચાર અણુંવાળાથી લઈને અનંત પર્યન્તના અણુવાળા ના આકારાની પ્રરૂપણ-અનન્તાનન भ०१
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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