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________________ १७८ भगवतीसूत्रे सप्तमः खलु पूर्वोक्तस्तनुवातः कतिवर्णः, कतिगन्धः, कतिरसः, कतिस्पर्शः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'जहा-पाणाइवाए, नवरं अट्ठफासे पण्णत्ते' हे गौतम ! सप्तमः पूर्वोक्त स्तनुवातो यथा प्राणातिपातः पञ्चवर्णः, द्विगन्धः, पश्चरसः प्रतिपादित स्तथैवायमपि पञ्चवर्णः, द्विगन्धः, पश्चरसः प्रज्ञप्तः, किन्तु नवरम्-प्राणातिपातापेक्षया विशेषस्तु सप्तमस्तनुवातः अष्टस्पर्शः प्रज्ञप्ता, कर्कशमृद्गुरुम्घुस्निग्धरुक्षभेदात् , तनुवातादीनां वादरपरिणामत्वात् तत्रोक्ताष्टरूपर्शसंभवात् , इत्यभिमायेणाह-'एवं जहा सत्तमे तणुवाए तहा सत्तमे घणवाए, घणोदही, पुढवी' एवंपूर्वोक्तरीत्या यथा सप्तमस्तनुवातः प्रतिपादितः तथा सप्तमो धनवातः, सप्तमो गया है। 'सत्तमेणं भंते। लणुवाए कइवण्णे' हे भदन्त ! सातवां जो तनुबात है वह कितने वर्णों वाला है, कितने गंधोंवाला है, क्षितने रसोंथाला है, और कितने स्पर्शी वाला है ? गौतम के इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जहां पाणाइवाए नवरं अहफासे एण्णत्त' हे गौतम! सातवां जो पूर्वोक्त तनुवात है वह प्राणातिपात की तरह पांचवर्णों वाला, दो गंधोवाला, पांच रसोवाला, कहा गया है, किन्तु प्राणातिपात की तरह यह चार स्पों वाला नहीं है अपि तु आठ स्पशॉवाला है। आठ स्पर्श ये हैहलका, भारी, चिकना, गरम, ठण्डा, रूखा, कडा और नरम । तनुवात आदि बादर परिणामवाले होते हैं-इस कारण वहां आठ स्पर्शों का सद्भाव बन जाता है इसी अभिप्राय से ऐसा कहा गया है-एवं जहा सत्तमे तणुवाए तहा सत्तमे घणवाए, घणोदही, पुढवी' कि जिस प्रकार गौतम स्वामीना प्रश्न-" मत्तमेणं भंते ! तणुवाए कइ वण्णे ?" मान! સાતમે જે તનુવાત છે, તે કેટલાં વર્ષોવાળે છે? કેટલા ગધેવાળો છે? કેટલા રસવાળે છે? કેટલા સ્પર્શેવાળે છે? - महावीर प्रसुनात२-"जहा पाणाइवाए नवरं अटू फासे पण्णते" હે ગૌતમ! સાતમે તનુવાત, પ્રાણાતિપાત પરિણત કમપદની જેમ, પાંચ વર્ણોવાળે, બે ગધેવાળે અને પાંચ રવાળો કહ્યો છે. પરંતુ પ્રાણાતિપાત પરિણત કર્મયુદ્ધની જેમ તે ચાર સ્પર્શેવાળ નથી પણ આઠ સ્પર્શેવાળ छ. ते मा8 स्पना नाम नीय प्रमाणे छे-81, मारे, स्निग्ध, ३क्ष, ઉષ્ણુ, શીત, કઠણ અને નરમ તનુવાત આદિ બાદર પરિણામવાળાં હોય છે, તે કારણે ત્યાં આઠ સ્પર્શોને સમાવ સંભવી શકે છે. એ જ કારણે એવું ४ामा माव्यु छ :-" एवं जहा सत्तमे तणुवाए तहा सत्तमे घणवाए घणोदही, पुढवी" ने मारे सातमा तनुपातना विषयमा glad
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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