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भगवती
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गौतमः पृच्छति - 'अइ भंते कोहे१, कोवे २, रोसे, दोसे ४, अखमे५, संलणे, कलहे७, चंडिकेट, मंडणे. विवादे१०, एसणं कइवपणे जात्र कह फासे पण्णत्ते ? ' हे भदन्त | अथ क्रोध:- क्रोधपरिणामजनकं कर्म, कोपः क्रोधो दर्यात्स्वभावाच्चलनमात्रम्, तत्र क्रोधः इतिसामान्यं नाम वर्तते, कोपादयस्तु तत्मभवत्वात् तद्विशेषाः, रोपः- क्रोधस्यैव परम्परानुवन्धः, दोपः स्वस्य परस्य वा होता है । कर्कश आदि के भेद के स्पर्श आठ प्रकार का कहा गया है इन आठ में से इन में ये चार रपर्श होते हैं। यथा-शीत, उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष । लो ही कहा है- 'पंच रल पंचबन्नेहि परिणयं दुविहगंधच फार्स दुदियमणंतपसं सिद्धेहिं अनंतगुणहीणं ' ॥१॥ सिद्धों से अनन्तगुणहीन- अनंत प्रदेशोंवाला द्रव्ध पांच रसींवाला, पांच वर्णोंवाला, दो गंधोंवाला और चार स्पर्शोवाला द्रव्य होता है ।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'अह भंते! कोहे१, कोवे २, रोसे, दोले ४, अखमे५, संजलणे, कलहे७, चंडिके८, भंडणे९, विवा दे१०, एस णं, कवणे जाव कफासे पण्णत्ते ' कोष परिणामजनक कर्म का नाम क्रोध है, एवं क्रोध के उदय से अपने निजस्वभाव से विचलित होना, इसका नाम कोप है इन में क्रोध यह सामान्य नाम है। और कोपादिक उसके विशेष नाम हैं-क्योंकि ये कोपादिक उससे उत्पन्न होते हैं । कोप की जो परम्परा चलती है इसका नाम रोष है अपने को या दूसरे को जो दूषण लगाया जाता है इसका नाम दोष
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કહ્યા છે. આ આઠ સ્પોંમાંથી કાઇ પણ ચાર સ્પર્ધાના પ્રાણાતિપાત આદિ કર્મ પુદ્ગલેમાં સદ્ભાવ હાય છે.એજ વાત નીચેની ગાથા દ્વારા પ્રકટ ४२वाभां भावी छे. “ पंच रस पंचवन्नेईि परिणयं दुविहगंधच फार्स दुवि यमणंतपएसं सिद्धेहि अनंतगुणहीणं ॥१॥ अनंत अहेशीवाणु द्रव्य यांथ रस: पंथ वर्षावाणु मे गधोवाणु भने यार स्पर्शोवाणु होय छे.
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गौतम स्वामीनी प्रश्न-" अह भंते ! कोहे १, कोवेर, रोसे३, दोसे४, अखमे५, संजलणे६, कलहे७, चंडिक्केट, भंडणे९, विवादे १०, एसणं कइवण्णे जावं कइ फासे पण्णत्ते ? " अधपरिणाम भन तु नाम ोध भने ક્રોધના ઉદયને કારણે પેાતાના નિજ સ્વભાવથી વિચેલિત થવુ' તેનુ' નામ કાપ છે, 'આ બંધી નામેામાં ક્રાય સામાન્ય નામ છે અને કાપાદિક તેના વિશેષ નામ છે; કારણ કે કાપાદિકની ઉત્પત્તિ ધમાંથી થાય છે. કાપની જે પરમ્પરા ચાલે છે, તેનુ નામ રાષ છે, પેાતાના ઉપર કે અન્યના ઉપર