SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे नवधाभेदे एकोननवतिः ८९, दशधा भेदे शतमेकम् १८०, संख्येयधा भेदे द्वादश१२, असंख्यातभेदेतु एक एव, तदाह-"असंखेज्जा परमाणुपोग्गला भवंति" अनन्तमदेशिकस्य तु द्विधात्वे त्रयोदश १३, विधात्वे पञ्चविंशतिः२५, चतुर्धात्वे सप्तत्रिंशत् ३७, पञ्चधात्वात्वे एकोनपञ्चाशत्४९, पोढात्वे एकपष्टिः६१, सप्तधास्वे त्रिसप्ततिः७३, अष्टधात्वे पञ्चधाशीतिः८५, नवधात्वे सप्तनववि.९७, दंशधात्वे नवोसरशतम् १०९, संख्यातत्वे द्वादश १२, असंख्यातत्वे त्रयोदश१३, अनन्तल्वेतु एकएव विकल्पः, तदाह-"अणंतहा कन्जमाणे अणता परमाणुपोग्गला भवति' त्ति, ॥ मू० १॥ मूलम्-एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं साहणणाभेयाणुवाएणं अणंताणता पोग्गलपरियहा समणुगंतवा भवंतीति भकार से भेद करने पर ८९, दश प्रकार से करने पर १००, संख्यातप्रकार से भेद करने पर १२ और असंख्यात प्रकार से मेद करने पर १ ही होता है। सो ही कहा है-' असंखेज्जा परमाणुपोग्गला भवंति' अनंतप्रदेशिक स्कन्ध के दो प्रकार के भेद में १३, तीन प्रकार के भेद में २५, चार प्रकार के मेद में ३७, पांचप्रकार के भेद में ४९, छह प्रकार के भेद में ६१, सात प्रकार के भेद में ७३, आठ प्रकार के भेद में ८५, नौ प्रकार के भेद में ९७, दश प्रकार के भेद में १०९, संख्यात प्रकार के भेद में १२, असंख्यातप्रकार के भेद में १३, और अनन्तप्रकार के भेद में १ ही विकल्प होता है। सो ही कहा है, 'अनहा कज्जमाणे अणंता परमाणुपोग्गला भवंति''त्ति ॥सू० १॥ ૧૦૦ વિકલ્પ બને છે. અસંખ્યાત પ્રદેશ સ્કંધના જ્યારે સંખ્યાત વિભાગે કરવામાં આવે છે ત્યારે ૧૨ અને અસંખ્યાત વિભાગે કરવામાં આવે ત્યારે मे विE५ २ छ. मे पात “असंखेज्जा परमाणुगोग्गला भवति" આ સૂત્રપાઠ દ્વારા પ્રકટ કરી છે. અનંત પ્રદેશિક સ્કંધના બે વિભાગે કરવામાં આવે ત્યારે ૧૩ વિક, ત્રણથી લઈને અસંખ્યાત પર્યન્તના વિભાગો ४२वामां आवे त्यारे अनुभ २५, 3७, ४६, ६१, ७३, ८५, ८७, १०६, ૧૨ અને ૧૩ વિકલ્પ બને છે. અને જ્યારે તેના અનંત વિભાગે કરવામાં भावे छे त्यारे में वि५ मन छे. मे पात "अणंतहा कज्जमाणे अणंता परमाणुपोग्गला भवंति " ति" या सूत्रावा वामा ii . ॥०॥
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy