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अमेयचन्द्रिका टीका श०१२ उ०१ उद्देशार्थसंग्रहणम् भमवन्महावीरस्वामिवन्दनाथ प्रस्थानम् । अन्येषामपि श्रमणोपासकानां भगवद्वन्दूनार्थ प्रस्थानवर्णनम् । अन्य 'श्रमणोपासक शङ्खस्य निन्दाकरणम् भगवतश्च तन्नि: आंधनम्न जागरिकाया प्रकारमरूपणं च, ततः क्रोधात् व्याकुलस्य जीवस्य कर्म,
रूपणम् । तदनन्तरं मानवतो जीवस्य कमवन्धप्ररूपण, शस्य प्रवज्याग्रहण सामर्थ्यवर्णनं
वेति रू पण, शस्य प्रवज्याग्रहण Trish; !• 1 • द्वदिशितकोशिकार्थसंग्रहवक्तव्यतागाथामूलम्-सखे१, जयंतिर, पुढवि३, पोग्गल४,"अइवाय.५, राहु
लोगेय७, नागेय८, देव९, आया१०, बारसमसए दसुद्देसा॥१॥ छाया" शङ्खः१, जयन्ती, पृथिवी, पुद्गलः४, अतिपातः५, राहु:६, लोकश्चन, .. नागश्च८, देव:९; आत्मा १०, द्वादशशतके दंशोदेशाः||१|| .५ वन्दना करने के लिये जाने का विचार करना बाद में उनको वन्दना के लिये प्रस्थान करना, अन्य और भी श्रमणोंपासकों का प्रभुवन्दना के लिये प्रस्थान करना अन्य श्रमणोपासकों द्वारा, शंख की निन्दा कीजानी
और भगवान द्वारा इसका निषेध किया जाना। जागरिका के प्रकारों का प्ररूपण फ्रोध से व्याकुल हुए जीव के कर्मबंध की प्ररूपणा मानवाले जीव के कर्मबंध का प्ररूपण शंख का, प्रव्रज्याग्रहण सम्बन्धी प्रश्न और उसके सामर्थ्यका वर्णन.......... ..
इस चारहवे शतक के उद्देशक गत अर्थ की प्ररूपणा करनेवाली गर्धाि यह है-... "
.r । सेखे १ जयंति'२ पुढावि पोग्गल है अइवाय ५ राहु ६ लोगे य ७, -
, #Iraj: नागे यू.८, देव९ आया१०, बारसमसए दसुद्देसा॥१॥ry"_}}AL श्रेय ४२ जानेछ. " मडावी बाभीने वागवाना शमना વિચાર, વંદના કરવા જવા માટે પ્રસ્થાન અબ્ધ પ્રવકનું પણ પ્રભુને દિણ કરવા નિમિત્તે પ્રસ્થાન પ્રભુની સમીપે અસ્થિ શ્રાવ દ્વારા *શખબાર નિંદા ભગવાન મહાવીર, દ્વારા તેમને શાખની નિંદા ન કરવાનéપદેશ પ્રત્યે દ્વારા જાગૃરિકાના પ્રકારની પ્રરૂણા ક્રોધથી વ્યાકુળ બનેલા જીવનાં કર્મબંધન ३५, मानपाडा OTH -ती ,३५।।
प्रस्थान २ तना समयनु , , . if the far & _14272 EPAL भारभ शतना १० देशामेछ. २. देशाविषयती प्र५॥ ४२नाश माथा नीय प्रभारी छ-
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यति ३ पुढवि ३ पोगाल १ अहवाय.५, राहु। लोगे, य ५. 16 17
देव आया १०"बारसमर्सए दसुदेसा॥ ER Mivisisy SITTIN G
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