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________________ . भगवती नमंसित्ता एवं वयासी-' कृत्वा, वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, एवंवक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'एवमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुम्भे बदह त्तिका उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ' हे भदन्त । एवमेतत्-सत्यमेवेदम् , यावदतथैतत्-तथैवैतत् , तत् यथा एतत्-उपर्युक्तवृत्तान्तम् , यूयं वदथ-प्रतिपादयथ, इति कृत्वा विचार्य, उत्तरपौरस्त्यम् दिग्भागम्-ईशानकोणम् अपक्रामति-गच्छति, 'सेसं जहा उसभदत्तस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणे' शेषं सर्वम् यथा नवमशत के अयस्त्रिंशत्तमोद्देश के अभिहितस्य ऋषभदत्तस्य वर्णनं कृतं तथैव अस्यापि सुदर्शनस्य वर्णनं कर्तव्यम् , यावत्-प्रव्रज्याग्रहणानन्तरम् चतुर्थपष्ठाष्टमदशमद्वादशभक्तानि अनशनया छित्त्वा, प्राप्तकेवलज्ञानः सिद्धः बुद्धः, मुक्तः, सर्वदुःखप्रहीणश्चाभवदा किया 'वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' वन्दना नमस्कार करके फिर प्रभु से उसने ऐसा कहा-'एवमेयं भंते! जाव से जहेयं तुम्भे बदह त्तिकटु उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमह' हे भदन्त ! यह ऐसा ही है जैसा कि ओपने कहा है। इस प्रकार कह कर वह ईशान दिशा,की ओर चला गया यहां से आगे का कथन 'सेसं जहा उसमदत्तस्स जाये 'सव्वदुक्खप्पहीणे' पाकी को कथन जैसा नौवें शतक में ३३वें उद्देशक में ऋषभदत्त के संबंध में किया गया है वैसा ही सुदर्शन लेठ के संबंध में कर लेना चाहिये यावत् प्रव्रज्याग्रहण के बाद सुदर्शन अनगारने चतुर्थः भक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त, दशमभक्त, और द्वादशभक्त आदि तपस्या की और अन्त समय संथारा करके केवलज्ञान प्राप्त कर लिया, धे सिद्ध हो गये, धुद्ध हो गये, मुक्त हो गये और समस्त दुःखों से * પ્રદક્ષિણાપૂર્વક શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણા નમસ્કાર કરીને તેમણે "તેમને આ પ્રમાણે કહ્યું - " एवमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुम्भे वद त्ति कटु उत्तरपुर थिम दिसी. भाग अवकमइ" भगवन् ! आपना द्वारा प्रतिपादित अर्थ सर्वथा सत्य છે. આપ જે કહે છે તે સત્ય જ છે આ પ્રમાણે કહીને તેઓ ઈશાન દિશા તરફ ચાલ્યા ગયા. એ . “सेसं जहा उसमदत्तस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणे" त्या२ ५छीनुं समस्त કથન નવમાં શતકને ૩૩માં ઉદ્દેશામાં પ્રતિપાદિત કાષભદત્તના કથન અનુર સાર સમજી લેવું કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે સુદર્શન શેઠે પણ પ્રવ્રયા ગ્રહણ કરી ત્યાર બાદ તેમણે એક, બે, ત્રણ, ચાર, પાંચ ઉપવાસ આદિ તપસ્યા કરી. અત સમયે સંથારે કરીને તેમણે કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત કર્યું અને तभी सिद्ध मुद्ध, भुस्त मने साथी २हित / या ".नवर
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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