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प्रमेयमन्द्रिका टीका श० ११ उ०११ सू० ११ सुदर्शनचरितनिरूपणम् ६९ जोवणगमणुपत्तेणं' हे सुदर्शन ! ततः खलु त्वया उन्मुक्तालभावेन-परित्यक्तशैशवेन वाल्यात्परं वयः प्राप्तेनेत्ययः, विज्ञातपरिणतमात्रेण-परिपक्वविज्ञानेन, यौवनकमनुमाप्तेन-माप्तयौवनेन, युवावस्थापन्नेन 'तहारूवाणं थेराणं अतियं केवलिपन्नत्ते धम्मे निसंते' तथारूपाणां स्थविराणाम् अन्तिके-समीपे केवलिप्राप्तः-धर्मः निशमिता-सम्यगाकर्णितः, 'सेऽविय धम्मे इच्छिए पडिच्छिए, अभिरुइए' सोऽपिच धर्मः इन्छितः, प्रतीच्छितः-हृदयेनाभ्युपगतः, अभिरुचितःअभिप्रीतिविषयीकृतः, 'तं सुटुणं तुम सुदंसणा! इदाणिं पकरेसि' हे सुदर्शन ! तत्-तस्मात्कारणात् , सृष्टु-अतीव समीचीनम् , खलु त्वम् इदानीं-सम्प्रति प्रकरोषि-धर्मादिकमाचरसि । प्रस्तुतविषयमुपसंहरति-'से तेणट्टेणं सुदंगणा ! एवं बुच्चंइ-अस्थिणं एतेर्सि पलिओवमसागरोवमाणं खयेति वा, अवचयेति वा' हे परिणयमेत्तेणं जोधणगमणुपत्तेणं' हे सुदर्शन ! जब तुमने अपने बाल्यकाल का परित्याग कर दिया और धीरे २ विज्ञान की परिपकता से जब तुम युक्त हो गये तब यौवन ने तुम्हारे शरीर पर अपना पूर्ण अधिकार जमा लिया इस प्रकार युवावस्था से सुशोभित शरीरवाले बने हुए तुमने किसी एक समय 'तहारूवाण थेराण अंतिए केलि. पनत्ते धम्मे निसंते' तथारूपवाले स्थविरों के समीप केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण किया. उसके श्रवण से वह तुम्हें 'इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए,' इच्छित हुआ, उसकी तुमने हृदय से सराहना की उस पर तुम्हारी विशेषरूप से प्रीतिजगी 'तं सुझुणं तुमं सुदंसणा! इदाणि पकरेसि' सो इस समय तुम उसी धर्मका जो आचरण कर रहे हो, वह बहुत ही अच्छा कर रहे हो, 'से तेणट्टेणं सुदंसणा! एवं बुच्चड़, विण्णायपरिणयमेत्तेणं जोत्रणगमणुपत्तेण " सुशिन! माल्यावस्था पूरी કરી ધીરે ધીરે વિજ્ઞાનની પરિપકત્વતાથી જ્યારે તમે યુક્ત થઈ ગયા, ત્યારે યુવાવસ્થામાં તમારા પર પૂરે પૂરે અધિકાર જમાવી લીધે આ રીતે યૌવનથી सुशामित शरीरका मनमा सवा तमे ७ मे समये “तहारूवाणं थेराण अंतिए केवलिपन्नते धम्मे निसते" तथा३५११७ (२०४२ भुमति माहिथा हत) स्थविशनी पासे पतिप्रज्ञ धनु qा ५यु. “इच्छिए, पढिच्छिए, अभिरुइए" तेनु श्रव ४२dian a तमनेट माया, तमे तनी હદયથી સરાહના (પ્રશ સાથે કરી અને તે તમને વિશેષ રુચિકર લાગે. "त सुट्ठण' तुम सुईसणा! इदाणिं पकरे सि" उ सुशन 18 ! सत्यारे ५५ तम से मनी रे माराधना ४॥ २॥ छ, ते घार अथित छे “से