SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयधन्द्रिका टीका श० ११ २०१० सू० २ लोकालोकपरिणामनिरूपणम् ४२५ । सर्वतः-परितः, समन्नात्-सर्वदिक्षु संपरिक्षिप्य-संवेष्टय खलु तिष्ठेयुः, 'अहे णं चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुढीवस्स दीवस्स चउस वि दिसामु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि वलिपिंडे जमगसमगं वहियाभिमुहे पविखवेज्जा' अधः खलु अधोभागे चतस्रो दिक्कुमायौँ महत्तरिकाः अतिमहत्यः चतुरो बलिपिण्डान गृहीत्वा जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य चतसृषु वि दिक्षु पूर्वादिदिशासु, वाह्याभिमुखाः बाह्येऽभिमुखीभूय स्थित्वा तान् चतुरो वलिपिण्डान् यमकसमकं-युगपदेव-एकदैवेत्यर्थः, बहिराभिमुखं प्रक्षिपेयुः तदा-'पभ्रूणं गोयमा! ताओ एगमेगे देवे ते चत्तारि बलिपिंडे धरणितलमसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए' हे गौतम ! प्रभुः समर्थः खलु तेभ्यो देवेभ्यः एकैको देवस्तान चतुरो वलिपिण्डान् धरणितलं-पृथिवीतलम् , असंपाप्तं क्षिप्रमेव प्रतिसंहर्तुम्-ग्रहीतुं देव जंबूद्वीप नाम के इस द्वीप में स्थित मन्दर पर्वत ऊपर मन्दर की चूलिका को सब ओर से घेर कर खडे हो जावें 'अहे ण चत्तारि दिला कुमारीओ महत्तरियामओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स दीवस्स चउसु दिसा बहियाभिहीओ ठिच्चा ते चत्तारि पलिपिंडे जमगसमगं पहियाभिमुहे पक्खिवेज्जा' और उसके नीचे चार महत्तरिका देवियां चार यलिपिण्डों को लेकर जंबूदीपकी चार दिशाओं में-पूर्वपश्चिम आदि दिशाओं में बाहिर की ओर मुख करके खडी हो जावें और इस स्थिति से खडी होकर वे उन चारों ही बलिपिडों को एक साथ ही पाहिर फेंके 'पभू णं गोधमा! ताओ एगमेगे देवे ते चत्तारि पलिपिंडे धरणितलनसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए' तो हे गौतम ! उन देवों में एक एक देव उन चार वलिपिण्डों को जबतक कि वे जमीन અને મહાસુખવાળા ૬ દે આ જબૂદ્વીપમાં રહેલા મદર પર્વત ઉપર, भन्४२नी यूनिट (टीय) २ धेशने यी मानुभो । २ही. तय, “अहेण' चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियामी चत्तारि वलिपिंडे गहाय जवुरीवस्त्र दीवस्स चउस दिखांसु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चचारि वलिपिढे जमगसमग यहियाभिमुहे पक्लिवेज्जा" भने तनी नीये यार भत्तरि हामारीमा यार બલિપિંડેને લઈને ચાર દિશાઓમાં (પૂર્વ પશ્ચિમ આદિ દિશાઓમાં) બહારની તરફ મુખ રાખીને ઊભી રહે, અને તે સ્થિતિમાં ઉભી રહીને तमा तयार मालपाने में साथे 1 मा२ ३, तो "पभूणं गोयमा ! ताजो एगमेगे देवे ते चत्तारि बलिपिंडे धरणितलमसंपत्ते खिग्पामेव पडिसाहरित्तए" હે ગૌતમ! તે છ દે માં ને પ્રત્યેક દેવ તે ચાર બલિપિંડેને જમીન ઉપર भ० ५४
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy