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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १०७० ३ सू० १ देवस्वरूपनिरूपणम् पका अवसे याः 'एवं जाव थणियकुमाराणं' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत्-सुवर्ण: कुमारादारभ्य स्तनितकुमारपर्यन्तानामपि त्रयस्त्रयः आलापका वक्तव्याः, 'वाणमंतरजोइसियवेमाणिए णं एवं चेव' तथा वानव्यन्तर-ज्योतिषिकवैमानिकेनापि एवमेव पूर्वोक्तरीत्या त्रयस्त्रयः आलापका वक्तव्याः। गौतमः पृच्छति-'अप्पट्टिएणं भंते ! देवे महिड्डियाए देवीए मज्झं मज्झेणं वीइवइज्जा ?" हे भदन्त ! अल्पर्दिकः खलु देवो महर्टिकाया देव्याः मध्यमध्येन मध्यभागेन किं व्यतिव्रजेत् ? व्यतिक्रामेत् ? भगवानाह-'णो इणहे समहें' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नैतत् संभवति । गौतमः पृच्छति-समडिएणं भंते ! देवे समड्रियाए देवीए मज्झं मज्झेणं वीइव एज्जा?' हे भदन्त ! समर्द्धिकः खलु देवः समइनका तीसरा इस तरह से ये तीन आलापक हैं। 'एवं जाव थणियकुमाराण' इसी तरह से सुवर्णकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक के भवनपति देवों के ३-३ ओलापक कहना चाहिये । 'वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएणं एवं चेव' वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, एवं वैमानिक इन देवों के भी इसी तरह से ३-३ आलापक होते हैं ऐसा जानना चाहिये। अघ गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अप्पडिएण भंते ! देवे महिड़ियाए देवीए मज्झमज्झेण वीहवएज्जा' हे भदन्त ! जो अल्पद्धिक देव है वह महद्धिक देवी के बीचोंबीच से होकर निकल सकता है क्या? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'णा इणसमढे' हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा द्वितीय आला पक पूछते हैं की-'समडिएण भंते ! देवें समझियाए देवीए मज्झ. मज्झेण वीइवएज्जा' हे भदन्त ! जो समद्धिक-समान ऋद्धि जिसकी બને સમાનઅદ્ધિવાળા અસુરકુમારને બીજે આલાપક, અને મહદ્ધિક તથા અદ્ધિક અસુરકુમારને ત્રીજો આલાપક સમજવો. આ રીતે અસુરકુમાર વિષયક मासापडे समा . “एच जाव थणियकुमाराणं' से प्रमाणे सुवर्ण भारथी લઈને નિતકુમાર પર્યન્તના પ્રત્યેક ભવનપતિ દેવના ત્રણત્રણ આલાપકે સમसा. “वाणमतरजोइसियवेमाणिएणं एव चेव" का प्रभारी वानव्यन्त२, જ્યોતિર્ષિક અને વિમાનિક દેવાના પણ ત્રણત્રણ આલાપકે સમજવા. गौतम स्वाभान प्रश्न-अप्पढिए णं भंते ! देवे महढियाए देवीए मझे मन्झेणं वीइवएज्जा?" लगवन् ! २८५ द्धवाणे हे शुभद्धिा દેવીની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે ખરો? भडावीर प्रसुत्ति२ “णो इणठे समझे" गीतमा पात सलवी शती नथी. गौतम स्वामीना प्रश्न-" समढिएण भते ! देवे समड्ढिएणं देवीए मज्झ मज्झेण वीइवएजा ?" सारन् । म५ ऋद्धिवाना हे शु महाऋद्धिवाणी દેવીની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે ખરો ? भ० ११
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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