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________________ भगवतीस्त्रे व्यतिव्रज्य-व्यतिक्रम्य, पश्चात् विमोहयेत् , उभयमपि संभवतीत्यर्थः । गौतमः पृच्छति- अप्पडिए णं भंते ! असुरकुमारे सहडियरस असुरकुमारस्स मज्जमज्जेणं वीइवएज्जा ? हे भदन्त ! अल्पद्धिकः खलु असुरकुमारो महर्दिकस्य असुरकुमारस्य मध्यमध्येन मध्यभागेन किं व्यतिव्रजेत् ? व्यतिक्रामेत् ? भगरानाह-'णो इणटे समढे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः नैतत्संभवति, ‘एवं असुरकुमारे वि तिन्नि आलावगा भाणियबा जहा ओहिएण देवेणं भणिया' एवं रीत्या असुरकुमारेऽपि त्रय: आलापकाः भणितव्याः वक्तव्याः, यथा औधिकेनसामान्येन देवेन त्रयः आलापकाः भणिताः उक्ताः, तत्र अल्पद्धिकमहद्धिकयो. रेयः १, समकियोद्वितीयः २, महर्द्विकाल्पकियो स्तृतीयः इत्येवं त्रयः आला. निकल सकता है और बाद में उसे मोहित कर सकता है। इस तरह से दोनों बातें भी संभवित हो सकती हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अप्पडिए णं भले ! अस्तुरकुमारे महडियस्स असुरकुमारस्स मज्झमझेणं वीइवएज्जा' हे भदन्त ! जो असुरकुमार देव अल्पऋद्धि वाला होता है वह क्या अपने से बड़ी ऋद्धिवाले असुरकुमार देव के बीचोंबीच से होकर निकल सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं को इणडे सम?' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । 'एवं असुरकुमारे वि तिन्नि आलावगा भाणियन्वा, जहा ओहिएण देवेणं भणिया' इस तरह असुरकुमार में भी तीन आलापक कहना चाहिये, जैसे सामान्यदेव के साथ तीन आलापक कहे गये हैं। अल्पद्धिक महर्द्धिक का पहिला, दोनों समद्धिकों का दूसरा, और महद्धिक अल्पर्द्धिक વચ્ચે થઈને પસાર થઈ જાય છે અને ત્યાર બાદ તેને વિહિત કરે છે. એવું પણ સંભવી શકે છે. આ રીતે બને વાત અહીં સંભવિત હોઈ શકે છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-"अप्पढिपणं भते ! असुरकुमारे महि ढियस्स असुरकुमारस्स मज्झमझेणं वीइएज्जा ?" लगवन् ! म द्धिवा मे અસુરકુમાર દેવ શું અધિકઋદ્ધિવાળા અસુરકુમાર દેવની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે ખરો? ___महावीर प्रसुन उत्त२-"णी इणढे समठे" उ गौतम ! मे पात सलवी शती नथी. “एव असुरकुमारे वि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा जहा ओहिएणं देवेण भणिया "२वी शत सामान्य पनी साथे ३ साताप ४ा છે, એજ પ્રમાણે અસુરકુમારની સાથે પણ ત્રણ આલાપકે કહેવા જોઈએ– અલ્પદ્ધિક અને મહર્દિકને પહેલે આલાપક તે ઉપર આપવામાં આવ્યું છે.
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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