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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श०९ उ० ३२ सु०३ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् १९ याम् एकः शर्कराप्रभाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति, ५, इति प्रथमविकल्पत्रयेण पञ्चदश भङ्गाः-१५ । अथ वालुकापृथिव्या सह-तानाह- अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, दो पंकप्पभाए होज्जा' अयवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकाप्रभायां द्वौ पङ्कप्रभायां भवतः १, 'एवं जान अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकामभायां द्वौ धूमप्रभायां भवतः २, अथवा एको रत्नप्रभायाम् एको वालुकामभायां द्वौ तमायां भरतः ३, अथवा एको रत्नपभायाम् एको वालुकाममायां द्वौ अधः सप्तम्यां भवतः ४ । ' एवं एएणं गमएणं जहा तिण्हं तिय जोगो तहा भाणिययो जाप अहवा दो धूमप्पभाए, एगे तमाए एगे शर्कराप्रभा में, और एक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है ५, इस तरह प्रथमविकल्पत्रय की अपेक्षा से ये १५ भंग हैं। अव वालुकाथिवी के साथ इन विकल्पों को कहते हैं-(अहवा एगे रयणप्पाए एगे वालु यप्पभाए दो पंकप्पभाए होजा) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुका प्रभा में, और दो पङ्कप्रभा में, उत्पन्न हो जाते १, (एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, दो अहे सत्तमाए होजा) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकापभा में और दो धूमप्रभा में उत्पन्न होते हैं २, अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालकाप्रभा में और दो तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं ३, अथवा एक रत्नप्रभा में एक वालुकाप्रभा में और दो अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाते हैं ४, (एवं एएणं गमएणं जहा तिण्हं तिथजोगो, तहा माणिययो जाच अहवा दो धूमઉત્પન થાય છે. (૫) અથવા બે રત્નપ્રભામાં, એક શરામભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે પ્રથમ વિકલપત્રયની અપે क्षा त्रिस योगी १५ मागायो (विपी) थाय छे. એજ પ્રમાણે વાલુકાપ્રભાપૃથ્વી સાથે તે વિકલનું કથન કરવામાં આવે है-“ अहवा एगे रयणप्पमाए, एगे वालुयप्पभाए दो पकप्पभाए होजा" (१) અથવા એક રત્નપ્રભામાં, એક વાલુકાપ્રભામા અને બે પંકપ્રભામાં ઉત્પન્ન थाय छे. ' एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे बालुयप्पभाए दो अहे सत्त माए होज्जा" (२) अथ६ मे २त्नमामा, से वायुप्रभामा मन मे ધમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૪) અથવા એક રત્નપ્રભામાં, એક વલુકાप्रभामा भने में नये सातभी न२४मा -थाय छे. “ एवं ए ए ण गम एणं जहा तिण्ह तियजोगो तहा भाणियव्यो जाव अवा दो धूपप्पभाए, एगे
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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