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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ९ ३० ३ सू० ३२ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् ६७ शर्क रामभायाम् द्वौ तमायां भवतः ४, अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करा प्रभायां, द्वौ अधःसप्तम्यां भवतः ५। अथ ' एकः द्वौ एकः' इति विकल्पमाह'अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , द्वौ शर्क राप्रभायास , एको वालुकामभायां भवति १, “एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत्-अथवा एको रत्नप्रभायां, द्वौ शर्क रामभायाम् , एक पङ्कप्रभायां भवति २, अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायाम् एको धूमपभायां भवति ३, अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ शर्करामभायाम् एकस्तमायां भवति ४, दो नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं ३, अथवा एक नारक रत्न प्रभा में, एक शर्कराप्रभा से और दो तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं ४ अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और दो अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाते हैं ५। एक दो एक विकल्प के अनुसार (अहवा एगे ' रयणप्पभाए दो सकरप्पभाए, एगे वालपप्पभाए होज्जा) अथवा एक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, दो शराप्रभा मे उत्पन्न हो जाते और एक वालुकाप्रभा मे उत्पन्न हो जाता है १, (एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सकरप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा -एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न होता है, दो नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं और एक नारक पलप्रभा पृथिवी मे उत्पन्न होता है २, अथवा-एक रत्नप्रभा मे, दो शराप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है ३, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक રત્નપ્રભામાં, એક શર્કરા પ્રભામાં અને બે ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૪) અથવા એક રત્નપ્રભામાં, એક શર્કરા પ્રભામાં અને બે તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૫) અથવા એક રત્નપ્રભામાં એક શર્કરા પ્રભામાં અને બે નીચે સાતમી નરકમાં ઉ૫ન થાય છે. - હવે ૧-ર-૧ ની અપેક્ષાએ નીચે પ્રમાણે પાચ વિકલ્પ થાય છે— "अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होआ " (१) અથવા એક રત્નપ્રભામા, બે શરામભામાં અને એક વાલુકાપ્રભામાં ઉત્પન્ન थाय छे “ एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सफरप्पभाए, एगे अहे सत्त माए होज्जा" (२) अथवा मे ना२४ २नप्रमामा, मे शरामभामा मत એક નારક પંકપ્રભા નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે (૩) અથવા એક રતનપ્રભામાં બે શર્કરામભામાં અને એક ધુમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૪) અથવા એક
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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