SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयचन्द्रिका टी०॥ ९ ७०३२ सू०३ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् ५९ प्रयो रत्नप्रभायाम् एकोऽधःसप्तम्यां भवति६, 'त्रयः, एकः' इति विकल्पेन जाताः षट् ६ । एवं षट् , पट्, षट् , इति मेलने जाताः अष्टादश भगाः(१८) 'अहवा एगे सकरप्पभाए, तिन्नि बालुयप्पभाए होज्जा' अथवा एक शर्करामभायां भवति, त्रयस्तु वालुकाप्रभायां भवन्ति १, एवं जहेव रयणप्पभाए उवरिमाहिं समं चारियं, तहा सकरप्पभाए वि उवरिमार्हि समं चारेयव्वं ' एवमुक्तरीत्या यथैव रत्नप्रभाया उपरि मैंः उत्तरोत्तरैः समं चारितं योजितं तथैव शर्करामभाया अपि उपरिमैः उत्तरोत्तरैः पञ्चभिर्नरकैः समं चारयितव्यम्-योजयितव्यम् । तथा च अथवा एकः शर्क राप्रभायां भवति, त्रयः पड्कप्रभायां भवन्ति २, अथवा एकः शर्क राप्रभायां जाता है २, अथवा तीन नैरयिक रत्नप्रभा में हो जाते हैं और एक नैरयिक पङ्कप्रभा मे हो जाता है ३, अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है ४, अथवा तीन रत्नप्रभा मे और एक तमः प्रभा मे उत्पन्न हो जाता है ५, अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है ६, इस तरह ये तीन एक इस विकल्प द्वारा ६ भंग हो जाते हैं । इस प्रकार से ये ६-६-६ मिलकर १८ भंग हो जाते हैं। (अहवा एगे सकरप्पभाए, तिन्नि वालुयप्पभाए होजा १) अथवा एक शर्करामभा में उत्पन्न हो जाता है और तीन वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं १, ( एवं जहेब रयणप्पभाए उवरिमाहिं समं चारियं तहा सक्करप्पभाए वि उपरिमाहिं समं चारेयवं) जिस प्रकार से रत्नप्रभा के साथ आगे आगे की पृधिनियों का योग किया गया है, उसी तरह से शर्करापृथिवी का भी आगे की पांच पृथिवियों के साथ योग करना चाहिये तथा च-अथवा एक नैरयिक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होता है और तीन पङ्कप्रभा में उत्पन्नहोते સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે આ રીતે રત્નપ્રભા સાથે અન્ય પૃથ્વીઓના नाना सियासी वि ++९१८ थाय छ હવે શર્કરા પ્રભા સાથે ત્યારપછીની પૃથ્વીઓના ૧-૩, ૨-૨, અને ૩-૧ના २ १५ वियो मन छ. ते मतावामी मा छ-' अहवा एगे सक्करप्पभाए, तिन्नि बालयप्पभाए होजा१"(१)मय से राप्रमामा भने त्रय वायुसमामा उत्पन्न याय छे. (एव जहेव रयणप्पभाए उवरिमाहिं समं चारिय तहा सक्करप्पभाए वि उपरिमाहि समं चारेयव्व "रेवी शते २नमा साथ पछीनी ६ पृथ्वीमाना યેગથી વિકપિકહેવામાં આવ્યા છે, એ જ પ્રમાણે શર્કરામભા સાથે પછીની પાંચ પૃથ્વીઓના રોગથી બીજા વિક૯પે પણ કહેવા જોઈએ જેમકે-(૨) અથવા એક નારક શકરા પ્રભામાં અને ત્રણ પંકપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે(૩) અથવા
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy