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भगवतीसूत्रे व्यजनिकायं प्रति स प्रवीजितश्वेत चामरवालव्यजनिकः, अथवा प्रवीजिते श्वेतचामरे वालव्यजनिकेच यं प्रति स तथा. सर्व र्या सर्वा ऋद्धिः सर्वद्धिः, तया यावत् नादितरवेण, तथाहि-सर्वद्युत्या सर्ववलेन सर्व समुदयेन सर्वादरेण सर्व विभूत्या सर्वविभूपया सर्वसंभ्रमेण सर्व पुष्यगन्धमाल्यालङ्कारेण सर्वत्रुटितशब्दसंनिनादेन महत्या ऋद्या महत्या युत्या महता वलेन महता समुदायेन महता वरत्रटितयमकसमकवादितेन शङ्खपणत्रपटहरीझल्लरीखरमुखी हुडुकारजमृदङ्ग दुन्दुभि निर्घोप-नादिन-रवेण-वात्रुटितादीनां दुन्दुभियंन्तानां वादित्राणां निघोपः शब्दः तस्य नादितरवेण प्रतिध्वनिना सह एपां विस्तरतोऽर्थ औषपाति के द्विपश्चाशत्तम (५२) सूत्र मत्कयोयूपयर्पिणी टीकायाम् अवलोकनीयः, 'खत्तियकुंडग्गामस्स नयरस्स मझं मझेणं, जेणेव मारण कुंडअर्थात् अपनी समस्त राज्यऋद्धि से, "सत्वज्जुईए" समस्त वस्त्र और आमरणोंकी प्रमाले “सवयलेणं" अपनी समस्त सेनाओंसे "सव्य समुदएणं" अपने समस्त परिजनोंसे "सबारेणं" आदरसत्कार रूप सभी प्रयत्नोंसे "सम्वविभूईए" अपने समस्त ऐश्वर्यसे "सव्वविभूसाए" सभी प्रकार के वस्त्राभरण की शोभासे "सव्वसं नमेणं" भक्ति जनित अत्यधिक उत्तुकनासे "सव्य-पुप्फ-गंव-मल्लालंकारेण' सब तरहके पुष्पों से सभी प्रकारके गन्ध द्रव्यों से सभी प्रकारकी मालाओं से एवं सर तरह के अलंकारों से "सव्वतुडिय-सह-सणिणाएणे" सभी प्रकार के वादित्रों की मधुर ध्वनि से युक्त हुवा 'खत्तिय कु डग्गामनयरस्स मज्झ मज्झेणं-जेणेच माहणकुंड. ग्गाले नयरे जेणेव बहुसालए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए' क्षत्रिय कुण्डग्राम नगरके बीचसे होकर तथा मासूपाना प्रभाव 43 'सबबलेण" पातानी सभस्त सेनामा १९, " सव्यसमुदएण" पाताना समस्त परिन। 43 " सव्वादरेणं" माहर ससार ३५ सा प्रयत्न 43, “ सबविभूईए " पाताना समस्त मैश्वर्य 43, “ सयविभूसाए" तमाम प्रा२ना नामानी N 43, “ सवसंभमेणं " alsत नित सत्यात उत्सुता 43, “ सव्व-पुप्फ-गंध-मल्ल्ला लंकारेण" स प्रा२ना पु०॥ 43 स ४॥२॥ गध द्रव्ये। 43 सर्व प्रारनी भाये। १९ भने या प्रा२ना २५ । 43 " सव्वतुडियसह-सणिणाएणं " या ५४२ना पात्राना मधुर पनि डे युत थ न " खत्तियकुडग्गामनयरस्स मज्ज्ञ मझेणं-जेणेव माहणकुंड