________________
ફર્સ્ટ
भगवती सूत्रे
अनन्त.
6
बहुजनसाधारणाः कलमलस्य - देह स्थिताशुभ द्रव्यविशेषस्याधिवासेन अवस्थानेन दुःखादुःखरूपाः ये ते तया, बहुजनानां भोग्यत्वेन साधारणा, ये ते तथा, परिकिलेस किच्छ दुक्ख सज्झा अबुधजणणिसेविया' परिक्लेशेन महामानसायासेन कृच्छ्रदुःखेनच गाढशरीरायासेन ये साध्यन्ते वगीक्रियन्ते ते परिक्लेशकृच्छ्रदुःखसाध्याः अबुध जननिषेविताः अविवेकिजन सेविता, आपातरमणीया इत्यर्थः ' सदा साहुगरहणिज्जा' सदा सर्वदा साधु गर्हणीयाः बुधजन निन्दनीयाः अनंतसंसारवड्डूणा, कडुगफलवियाना अनन्वसंसारवनाः, ' संसृति परम्परामयोजकाः कटुकफलविपाकाः कटुकः अत्यन्तमतिकूलः फलविपाकः फळपरिणामो येषां ते तथा चुडलित्र अमुच्चमाणदुक्खाणुवंधिणो सिद्धिगमणविग्घा ' चुडलिका इव प्रदीप्ततृणपूलिकेच अमुच्यमानदुःखानुबन्धिनः अपरित्यज्यमानदु खानुबन्धयुक्ताः सिद्धिगगनविघ्नाः सिद्धिमाप्तिप्रतिबन्धकाः भवन्ति, ' से केस जाग, अम्मताओं के पुत्र गमगाए । के पच्छागमणाए ?" तत् तस्मात् कारणात् हे अम्बताती । कोऽसौ पुरुषः खलु जानाति - को जनः होते हैं, तुच्छ स्वभावामें होते हैं, अपने भीतर स्थित हुए अशुभ प विशेष के अवस्थान से ये दुःखा रूप होते हैं, भाग्य होने से ये बहुजन साधारण होते हैं, परिकले सविज्झा, अबुजगणिविया' नासिक महान आवास से और शारीरिक गाढ परिश्रम से ये बमें किये जाते हैं, अविवेकी जनों द्वारा ही इनकी सेवा होती है - अर्थात् ये आपाततः रमणीय होते हैं 'सदा साडुगरहणिज्जा' साधुजनों द्वारा ये सदा निन्दित होते रहते हैं 'अनंत संसारणा, कडुगफलविचागा' ये अनन्त संसार के वर्धक होते हैं, चिंपाक इनका फलकाल में अत्यन्त कटुक होना है, 'चुडलिक अनुच्यमाणदुक्खाणुबंधिणो, सिद्विगमविग्धा ' गदीस घास के मुके समान ये अमुच्य मानदुःखात्री होते हैं, और सिद्धि की प्राप्ति में ये प्रतिबन्धक होते हैं 'से केस ण जाण, अम्मताओं ! के पुच्छि गमगाए, के पच्छागमनाएं' इस कारण हे मातात ! कौन ऐसा है जो इस बातको जाने कि
"
,,
,
લીધે તેઓ અત્યન્ત દુઃખરૂપ જ હોય છે, ભેગ્ય હોવાથી તે બહુજન સાધારણ હાય છે, " परिकिलेस किच्छदुक्ख जज्ञा अबुजणणि सेविया" मानसि મહાન પ્રયત્નથી અને શરિરીક ગાઢ પરિશ્રમથી તેમને વશ કરી શકાય છે, અવિવેકી અને અજ્ઞાન લેકે દ્વારા જ તેમનુ' સેષન થાય છે-એટલે કે આપા तनी अपेक्षाओ ते रमणीय सागे छे, "सदा म हुगरहणिज्ञा " साधुना द्वारा તે તેમની સદા નિર્દેાજ કરાય છે, अर्णनससाणा, कडुगफल विवागा તેએ અનત સંસારના વક હાય છે અને તેમના વિપાક કાળે અતિ दु होय छे चुडलिन्च अमुच्चमाण मुक्खाणुधिणो, सिद्धिगमण विग्धा " સળગતા ઘાસના પૂળાની જેમ તે મુચ્યમાન ( જેને ત્યાગ ન કરી શકાય એવાં ) દુ.ખાનુખન્ધી હાય છે અને સિદ્ધિગતિની પ્રાપ્તિમાં અવરોધક હાય છે. से केस णं जाणइ, अम्प्रताओ ! के पुत्रि गमगाए, के पच्छागमनाए
८८
"
و