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भगवतीसूत्रे
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नगरस्य मध्यमध्येनः निर्गच्छति' निगच्छित्ता जेणेव माहणकु डग्गामे नगरे जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छ क्षत्रियकुण्डग्रामनगरात निर्गत्य यत्रैव ब्राह्मणकुण्डग्रामं नगरमासीत् यत्रैव बहुशालकं चैत्यम् उद्यानमासीद, तन्त्र उपागच्छति, 'उनागच्छित्ता तुरए निगिण्हेइ, निगिहणेत्ता रहं ठवेइ, ठवेता रहाओ पचोरुह, उपागत्य तुरगौ अश्वौ निगृह्णाति - निरुणद्धि निगृद्ध निरुध्य रथं स्थापयति, स्थापयित्वा रथात् प्रत्यवरोहति - अवतरति पचोरु हित्ता पुष्फ तंबोलाउहमाई वाहणाओं परिसज्जेइ ' 'स्थात्प्रत्यवरु अवतीर्य पुष्पताम्बूला धादिकम् उपानहौ च विसृजति परित्यजति, 'बिसज्जेता एगसाडियं उत्तरासंकरे, पुष्पायुधादिकम् उपानहौ च विसृज्य - परित्यज्य एकशाटिकम् अस्यूतम् उत्तरासङ्गं करोति करिता कृत्वा अंजलिमउलियहत्थे, जेणेव समणे ग्राम के बिलकुल बीचमें से होकर निकला 'निग्र्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामं नधरे, जेणेव बहुसालए चेहए तेणेव उवागच्छ ' 'और निकलकर जहाँ ब्राह्मण कुण्डग्राम नगर और जहां वह बहुशालक उद्यान था उस ओर चला'' उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हेइ' वहां पहूँचकर उसने अपने घोड़ो को रोक दिया, ' णिगित्ता' रहं ठवे ' घो डोको रोक कर रथको खड़ा किया, 'टवेत्ता रहाओ पच्चोरुहद्द ' रथको खड़ा करके फिर वह उससे नीचे उतरा 'पच्चोरुहित्ता पुष्फ तांबोलाउयमाईय वाहणाओ य विसज्जेह' नीचे उतर कर उसने पुष्प, ताम्बूल, आयुध आदिको एवं दोनों जूतों को छोड़ दिया. 'विसज्जेत्ता एगसाडियं उत्तरासंग करेह, इन सबको छोड़ करके फिर उसने एकशाटिक उत्तरासंग किया, 'करिता एक शाटिक उत्तरासंग करके 'अंजलि " निगच्छत्ता ? त्यांथी नीडजीने " जेणेव माहणकु डग्गामं नयरे, जेणेव बहुमालप, चेइए तेणेव उवागच्छइ " नयां श्राह्मकुंडग्राम नगर हेतु त्यां महु. बध्यो “उओोगच्छित्ता” त्यां यह थी तुर निगिण्इ " तेथे अधीने याणिगिण्हेत्ता रहूं ठवेद ” भने २थने अलेो राज्यो. “ठवेत्ता रहाओ पुच्चो रुइइ " रथने जलेो राजीते ते २थभांथी नीचे तिर्थो, " पच्चोरुहित्ता पुप्फतांबोला उयमाइयं वाहाणाओ : य विसज्जेइ " २थभांथ उतरीने तेथे पुष्य, तांबूस ( पान )
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शासक -उद्यान हेतुं, ते तर ते आग
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आयुधो महिना परित्याग ने
तथा यगरमांना त्याग़ ये “ विसज्जेत्ता " ते वस्तु " एगसाडीयं उत्तरासंगं करेह " मे सणे उत्तरास ( उत्तरीय ) धार .ज्यु".!" करिता?”,उत्तरासधारण उरीने " अनलिम उलियहत्थे जेणेव
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