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भगवतीसूर्य २२० सख्याताः ४, एकः पञ्च संख्याताः ५, एका पसंख्याता:६, एकः सप्तसंख्याता: ७, एकः अष्ट संख्याताः ८, एकः नत्र संख्याताः २, एकः दश संख्याताः १०, एकः सख्याता. संख्याताः ११, द्वौ संख्याताः संख्यालाः १२, त्रयः संख्याता संख्याताः १३, चत्वारः संख्याताः संख्याताः १४, पञ्च संख्याता संख्याताः १५, पटु संख्याताः संख्याताः १६, सप्त संख्याताः संख्याताः १७, अष्ट संख्याताः स ख्याताः १८, नव संख्याताः संख्याताः १९, दश संख्याताः संख्याताः २०, स ख्याताः संख्याताः संख्याताः २१ तथा च-एको रत्नप्रभायाम् , एकः शकराप्रभायाम् , संख्याता वालुकामभायाम् १, एवं तृतीयस्थाने पङ्कप्रभादि पृथिवीयोगे कृते पञ्च भङ्गा भवन्ति ५, एवं द्वितीये शर्करा
और संख्यात, २ एक दो और संख्यात, ३ एक तीन औरसंख्यात, ४ एक चार और संख्यात, ५ एक, पांच और संख्यात, ६ एक, छह और संख्यात,७ एक, सात और संख्यात,८ एक, आठ और संख्यात,९ एक, नौ और संख्यात, १० एक, दश और संख्यात, ११ एक, संख्यात
और संख्यात, १२ दो, उख्यान और संख्यात, १३ तीन, संख्यात और संख्यात, १४ चार संख्यात और संख्यात, १५ पांच, संख्यात और संख्यात, १६ छह, संख्यात और संख्यात, १७ सात, संख्यात और संख्यात, १८ आठ, संख्यात और संख्यात, १९ नौ, संख्यात और संख्यात, २० दश, संख्यात और संख्यात, २१ संख्यात, संख्यात
और संख्यात । तथा- एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, और संख्यात नारक वालुकाप्रभा में होते हैं १, तृतीय स्थान में समपा-(१) २४-४-सच्यातना, (२) ४-में-स यातना, (3) ४त्र सध्यातना, (४) ४-या२-सभ्यातना, (५) 23-पांय-सभ्यातना, (6) मे४-७-सभ्यातना, (७) मे४-सात-सभ्यातना, (८) मे४-मा-सया. तना, () मे४-३-सभ्यातना, (१०) मे-४स-सभ्यातना, (११) - सध्यात मने सभ्यातना, (१२) मे-यात-स च्यातना, (१३) [-सभ्यात सध्यातनी, (१४) या२-सध्या-सध्यातना, (१५) पाय-सध्यात-संध्यातना, (१६) ७-सध्यात-सज्यातना, (१७) सात-सच्यात-सण्यातना, (१८)
सा४-सभ्यात-सज्यातना, (१८) नव-सच्यात-सभ्यातना, (२०) ४स"सभ्यात-सभ्यातना, मने (२१) सध्यात, सध्यात भने सध्यातरम....
(૧) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરામભામાં અને સંખ્યાત નારક વાલુકાપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. એ જ પ્રમાણે ત્રીજા "પદમાં પંકપ્રભા