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प्रमैयचन्द्रिका टी० श०९ उर सू० १० भवान्तरप्रवेशनकनिरूपण २१५ याम् , एको वालुकाप्रभायां स ख्येयास्तमःप्रभायां भवन्ति, अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकामभायां संख्याः अधःसप्तम्यां भवन्ति । 'अहवा एगे रयणप्पभाए, दो वालुयप्पभाए स खेज्जा पकप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ वालुकाप्रभायां स ख्येयाः पङ्कमभायां भवन्ति, एवं एएणं कमेणं तिया संजोगो, चउक्कसंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा दसहं तहेव भाणियबो' एवं पूर्वोक्तरीत्या एतेन उपयुक्तेन आलापानां क्रमेण त्रिकसंयोगः, चतुष्कसंयोगः, यावत पञ्चकसं योगः, षट्कस योगः सप्तकसयोगश्च यथा दशानां भणितस्तथैव स ख्यातानाअधाससभी पृथिवी में होते हैं " यह अंतिम भंग है-इसके पहिले तीन भंग इस प्रकार से हैं। अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभामें और संख्यात नारक धृमप्रभा में होते हैं, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में और संख्यात नारक तमःप्रभा में होते हैं, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में और संख्घात नारक अधःसप्तमी पृथिवी में होते हैं 'अहवा एगे रयणप्पभाए, दो वालुथप्पभाए, संखेजा पंकप्पभाए होजा' अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक वालुकाप्रभा और संख्यात नारक पंकप्रभामें होते हैं, ' एवं एएणं कमेणं तिया सजोगो, चउक्क संजोगो, जाव सत्तक संजोगो य जहा दसहं तहेव भाणियव्वो' इस उपयुक्त आलापक्रमसे, जैसा दश नारकों का त्रिक संयोग, चतुष्कसंयोग, पंचक संयोग, षट्रक संयोग और ससक संयोग पहिले कहा जा चुका है, उसी प्रकार से उसी तरह से स ख्यात नारकों का भी त्रिक संयोग से ले પ્રભામાં, એક વાલુકાપ્રભામાં અને સંખ્યાત નારક તમઃપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામા અને સંખ્યાત નારક भासभामा उत्पन्न थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्रभाए,, दो वालुयप्पभाए संखेज्जा पकप्पभाए, होज्जा" अथवा : ना२४ २त्नमामा, मे. ना२४ पानामा मन सध्यात ना२४ ५४ामा अत्पन्न थाय छे. “ एवं एएण कमेणं तिया संजोगो, चउक्कसंजोगो, जात्र सत्तकसजोगो य जहा दसण्हं तहा भाणियन्वो " मा उपयुत मादा५ मथी व श नाना सियो, ચતુષ્કસંગ, પંચસાગ, ષટસંગ અને સપ્તમસંગ આગળ કહેવામાં આવે છે, એ જ સંખ્યાત નારકેને ત્રિકસંગથી લઈને સમકસંયોગ પર્યન્તને સાચાગ કહેવે જોઈએ. તે આલાપકે કેવા બનશે તે સમજાવવા