SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ atraन्द्रिका टीका श० ९ ३० ३२ सू० ९ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् १२३ इत्येवमादयश्चतुरशीतिर्विकल्पाः, तैश्चैकस्य सप्तकसंयोगस्य गुणने चतुरशीतिरेव भा भवन्ति । सर्वे मेल ने अष्टाधिकाष्टसहस्र (८००८) भङ्गा भवन्ति इति ॥ ९ ॥ दशानाम् — एकसंयोगे द्विक्संयोगे ܕ दशानां नैरयिकाणां कोष्ठकम् 33 15 " ܕ " ७ १८९ त्रिसंयोगे १२६० चतुष्कसयोगे २९४० पञ्चकसंयोगे २६४६ ८८२ षट्कसंयोगे सप्तकसंयोगे ८४ सर्व मेलने ८००८ मूलम् — “ संखेज्जा भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविमाणा० पुच्छा, गंगेया ! रयणप्पभाएवा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७ | अहवा एगे रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए होजा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाष संखेज्जा असत्तमाए होज्जा, अवा दो रयणप्पभाए, संखेज्जा सक्करप्पभाए वा होज्जा एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, संखेज्जा अहे सत्तमाए होज्जा । अहदा तिन्नि रयणप्पभाए, संखेज्जा सक्करपभाए होज्जा, एवं एएणं कमेणं एक्केक्को संचारेयव्वो जाव अहवा दस रयणप्पभाए, संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दस रचणप्पभाए, संखेज्जा आहेसत्तमाए होज्जा । - १ - ४ ) इत्यादिरूप से ८४ विकल्प होते हैं। इन ८४ विकल्पों का सात नारक के सप्तसंयोगी एक अंग के साथ गुणा करने पर ८४ भंग आ जाते हैं | सु०९ ॥ १-१-१-४" धत्यादि ३५ ८४ विपना हुन ८४ ससई सयोगी लग थाय छे, ॥ सू. ६ ॥ म २५
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy