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________________ १४० भंगयतीमो एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पमाए, एगे तमप्पमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा १३' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एकस्तमः प्रभायाम् , एकोऽधासप्तम्यां भवति, १३, 'अहवा एगे श्यणप्पभाए पगे वालुयप्पमाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १४' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकामभायाम् , एको धृमप्रभायाम् , एकस्तमायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति १४, 'अहवा एगे रयणप्पभाए. एगे पंकप्पभाए, जाव एगे अहे सत्तमाए होज्जा१५' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः पङ्कमभायाम् , यावत्-एको धूमप्रभायाम् , एकस्तमःप्रभायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति १५, 'अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालयप्पमाए, जाब एगे तमाए, होज्जा १६ ' अथवा एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकामभायाम् , यावत् एकः एगे पकप्पभाए, एगे तमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा मे , एक नारक तमः प्रभा मे और एक नारक अघः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है १३, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक चालुकाप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः ससमी में उत्पन्न हो जाता है १४, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए जाव एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, यावत् एक नारक धूमप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा मेंऔर एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १५, (अहवा तमपभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (१३) अथवा मे ना२४ २त्नप्राम, मे નારક વાલુકાપ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં, એક નારક તમ પ્રભામાં, અને मे ना२४ नीय सातमी न२४मा अत्पन्न थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे बोलुयप्पभाप, एगे धूमपभाष, एगे तमप्पभाप, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (૧૪) અથવા એક નારક ૨ પ્રભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભમાં, એક નારક ધૂમપ્રભામાં, એક નારક તમ પ્રભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી નરકમાં उत्पन्न थाय छ “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पकप्पभाए, जाव एग अहे सत्तमाए होज्जा” (१५) अथवा मे ना२४ २. પ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં, એક નારક ધુમપ્રભામાં, એક નારક તમઃ प्रभामा भने से ना२४ नीय सातमी न२४मा उत्पन्न याय छे. "अहवा
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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