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________________ भगवतीसरे अथ पञ्चानां पश्चायोगे एकविंशतिविकल्पानाह-' अहया एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगेवालयप्पमाए एगे पंकप्पगाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नपभायाम् , एकः शर्करामभायार, एको वालुकामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एको धूममभायाम् । भवति १, “ अहवा एगे रयणप्पमाण, एगे सकरप्पमाए, एगे वालुयप्पभाए. एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए होजा २' अथवा एको रत्नममायाम, एकः शक राममायाम् , एको वालुकाममायाम् एकः पङ्कम. मायाम् , एकस्तमः प्रभायां भवति २, 'अहवा एगे रयणप्पभाए, जात्र एगे पंकप्पमाप, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ३' अथवा एको रत्नमभायाम , यावर-एकः शर्करापमायाम् , एको बालुकाप्रभायाम् एकः पङ्कममायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां अथ पांच नारकों के पंचक योग में २१ विकल्प जो होते हैं उन्हें सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं-(अहवा एगे रयणप्पमाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालपप्पभाए, एगे पंकप्पसाए, एगे धूमप्पभाए होजा १,) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शकरप्रभा में, एक नारक वालुकाममा में, एक नारक पंकप्रभा में और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है १, (अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पमाए, एगे पंकप्पभार, एगे तमाए होज्जा २) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक कार्करानमा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है २, (अहया एगे रयणप्पसाए जाव गगे पंकप्पभाए, एगे अहे संत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शकरप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, और एक लारक હવે પાંચ નારકના પંચગથી બનતા ૨૧ ભાગાઓને પ્રકટ કરવામાં भाव छ-" अवा एगे रयणपए, एगे सक्करप्पभाए, एगे बालयप्पभाए, एगे पप्पभाए, एगे धूमपभाए होज्जा” (१) अथवा मे ना२४ २त्नप्रभाभा એક નારક શરાપ્રભામાં, એક નારક વાલુકા પ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં भने से ना२४ धूमलामा उत्पन्न थाय छे. " अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए होज्जा" (२) અથવા એક નારક રત્નપભામાં, એક નારક શર્કરા પ્રભામા, એક નારક વાલકાપ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં અને એક નારક તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય छ "बहवो एगे रयणप्पभाए, जाव एगे पक-पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (૩) અથવા એક નારક રતનપ્રસામાં, એક નારક શર્કરામભામાં, એક નારક વાલકાપ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી પૃથ્વીમાં ઉત્પન્ન થાય છે.
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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