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________________ ८८ भगवतीसत्रे ___ अथ चतुणी नैरयिकाणां चतुश्चतुर्नरकसंयोगेन जायमानान् पञ्चत्रिंशद्भङ्गान् प्ररूपयितुमाह-' अहवा एगे' इत्यादि । 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायास् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायां भवति १) ' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकाप्रभायाम् , एको धूमप्रभायां भवति। 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे बालुयप्पभाए, एगे तमाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एकस्तमायां भरति३ । ' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, , अव सूत्रकार चार नैरपिकों के चार चार नरक के संयोग से जायमान ३५ अंगों की प्ररूपणा करने के निमित्त कहते हैं-(अहवा एगे रथणप्पमाए एगे सकरप्पसाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होजा) अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालकाप्रा में और एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है १, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सरप्पभाए, एगे बालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा २) एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रमा में, और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २, (अहवा-एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे बालुयप्पभाए, एगे तमाए होज्जा ) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३, (अहवाँ एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, હવે સૂત્રકાર ચાર નારકના ચાર, ચાર નરકમાં પ્રવેશની અપેક્ષાએ બનતા ૩૫ ભાંગાઓની પ્રરૂપણ કરવા નિમિત્તે કહે છે કે – " अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरपभाए, एगे ब लुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होजा" (१) २५५41 मे ना२४ २त्नप्रामा, ४ ना२३ ४२मामi, ४ ना२४ वासुसलामा भने से ना२४ ५४मा पन्त थाय छे. " अहवा एो रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे व लुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा" (૨) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરાખનામાં, એક નારક पासुप्रनामा भने से ना२४ धूमप्रनामi Guन थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्काप्पभाए, एगे बालुयप्रभाए, एगे तमाए होज्जा" (3) मथ। એક નારક રત્નપ્રસામાં, એક નારક શર્કરામભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રશામાં
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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