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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०८ उ०८ सू०३ कर्मवन्धस्वरूपनिरूपणम् वध्नाति, 'पुरिसपच्छाकडो वि बंधइ २ ' पुरुपपश्चात्कृतोऽपि बध्नाति, २ , 'नपुसंगपच्छाकडो वि वंधइ ३' नपुंसकपश्चात्कृतोऽपि वध्नाति ३, 'हत्थीपच्छाकडा वि वंधति४, स्त्रीएश्चात्कृता अपि वध्नन्ति४, 'पुरिसपच्छाकडा वि वंधंति ५, पुरुषपश्चात्कृता अपि वध्नन्ति ५, 'नपुंसगपच्छाकडा वि वंधति ६, नपुंसकपश्चात्कृता अपि वध्नन्ति६, अथवा इत्थीपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडो य बंधइ ७, अथवा स्त्रीपश्चात्कृतश्च पुरुषपश्चात्कृतश्च वध्नाति ७, एवं बंधई' (१) जो अवेदक जीव स्त्रीपश्चात्कृत होता है वह भी इस ऐपिथिक कर्मका बंध करता है 'पुरिसपच्छाकडो वि बंधई' (२) जो पुरुषपश्चात्कृत होता है वह भी इस ऐयोपथिक कर्म का बंध करता है, 'नपुंसगप च्छाकडो वि बंधइ ३' और जो नपुंसकपश्चात्कृत होता है वह भी इस ऐर्यापथिक कर्म का बंध करता है 'इत्थीपच्छाकडा वि बंधंति ४' जो जीव-अवेदक जीव स्त्रीपश्चात्कृत होते हैं वे भी इस ऐपिथिक कर्म का यंध करते हैं। 'पुरिस पच्छाकडा वि बंधंति ५' जो अवेदक जीव पुरुषपश्चात्कृत होते हैं वे भी इस ऐपिथिक कर्म का वध करते हैं। 'नपुंसग पच्छाकडा वि वधंति ६' जो अवेदक जीव नपुंसक पश्चाकृत होते हैं वे भी ऐपिथिक कर्म का बंध करते हैं। ' अहवा-इत्थी पच्छाकडो य, पुरिसपच्छाकडो य पंधइ ७' अथवा जो अवेदक जीव स्त्रीपश्चात्कृत होता है तथा पुरुषपश्चात्कृत होता है वह भी ऐर्यापथिक
હવે ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નોના ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે કે " गोयमा ! ' गौतम ! ( इत्यीपच्छाकडा वि वधइ) (१) २ मवे: જીવ સ્ત્રી-પશ્ચાદ્ભૂત હોય છે તે પણ ઐર્યાપથિક કર્મને બંધ કરે છે (૨) पुरिसपच्छाकडो वि बधइ) ५२५ पश्चात ५९Y मर्यापथि भने। म डे छ(3) "नपुसगपच्छाको वि वधइ" नघुस ५श्यात ०३ ५५ अर्यापथि४ भने। म रे छ. (४) " इत्थी पच्छाकडा वि वध ति" स्त्री-५यात भव: वो मा मेयापथि भनी ५५ ४२ छ (4) पुरिस पच्छाकडा वि वधति" पुरुष ५श्यात्त म४ ७ ५ अर्यापथि भनी म अरे (6) “ नपुस गपच्छाकडा वि वध ति” नपुस ५श्यात भर ७ ५९ अर्या५थि५५ ४२ छे (७) “ अहवा-इत्थी पच्छा कडो य, पुरिस पच्छाकडेा य बंधइ" २ ३६४ ७१ स्त्री-५यात डाय छे तथा पुरुष ५श्यात य छ, ते ५ अर्यापथि: मना ५५ रे छ. " एव एए