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भगवती सूत्रे
भवति । गौतमः पृच्छति से णं भंते । किं सकसाई होज्जा, अकसाई होज्जा ?' tara ! स खलु किं सकपायी भवति किं वा अकषायी भवति ? भगवानाह - 'गोयमा ! सकसाईहोज्जा, नो अकसाई होज्जा ' हे गौतम ! स पुरुषः सकपायी भवति, नो अकपायी भवति, विभङ्गज्ञानस्य अवधिज्ञानपर्यवसानकाले कपायक्षयस्याभावात् । गौतमः पृच्छति - ' जइ सकासाईहोज्जा, सेणं भंते ! कसु कसाए होज्जा ?' हे भदन्त ! यदि सकषायी भवति तदा स खलु कतिषु कपायेषु भवति ? भगवानाह - ' गोयमा ! चउसु संजलणको हमागमायालोभेसु होज्जा ' हे गौतम ! स प्रतिपन्नावधिज्ञानी चतुर्षु संज्वलनक्रोधमानमाया
अकसाई होज्जा ) हे भदन्त ! प्रतिपन्न अवधिज्ञानवाला वह विभंगज्ञानी सकषायी होता है या अकषायी होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - (गोमा ) हे गौतम (संकसाई होज्जा, नो अकसाई होज्जा ) वह पुरुष सकषायी होता है, अकषायी नहीं होता है । क्यों कि जिस काल में विभंगज्ञान अवधिज्ञानरूप में परिणत होता है उस काल में कषाय क्षय का अभाव रहता है ।
अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं - ( जइ सकसाई होज्जा से णं भंते! कस कसा होजा) हे भदन्त ! यदि वह जीव सकषायी होता है तो कितनी कषायों में होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम! (चउ संजणको हमाणमायालो भेसु होज्जा) वह प्रतिपन्न अवधि गौतम स्वाभीना प्रश्न - ( से णं भंते! किं सकसाई होज्जा, अकसाई होज्जा ? ) डेलहन्त! ते प्रतियन्न अवधिज्ञानवाणी विल'गज्ञानी पुरुष शु સકષાયી હાય છે કે અકષાયી હાય છે ?
महावीर अलुना उत्तर--" गोयमा ! " हे गौतम ! ( सकसाई होज्जा, नो अक्साई होज्जा ) सम्षायी होय छे, अपायी होतो नथी. तेनुं रण मे છે કે જે કાળે વિભગજ્ઞાન અધિજ્ઞાનરૂપે પરિણમન પામે છે, તે કાળે કષાયક્ષયના અભાવ રહે છે.
गौतम स्वाभीने प्रश्न - - ( जइ सफाई होज्जा, से णं भंते! कइसु कसा एस होज्जा ? ) डेलहन्त ! ले ते कुव सम्षायी होय छे, तो ते लवभां કેટલા કષાયેના સદ્ભાવ રહે છે ?
भडावीर अलुना उत्तर-- " गोयमा !” हे गौतम! ( घउसु सं'जलण कोमाणमाया लोभे होज्जा ) प्रिते तयन्न अवधिज्ञानवाणी कुत्र संभवान