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भगवतीसौ गढवासाउए, उक्कोसेणं पुन्चकोडिआउए होज्जा ' हे गौतम ! स प्रतिपन्नावधिज्ञानः पुरुषो जघन्येन सातिरेकाष्टवर्पायुष्के, उत्कृप्टेन तु पूर्वकोटयायुष्के भवति । गौतमः पृच्छति-'सेणं मंते ! किं वेदए होज्जा अवेदए होजा' हे भदन्त! स खलु प्रतिपन्नावधिज्ञानः किं वेदको भवति ? किं वा अवेदको भवति ? भगवानाह'गोयमा ! सवेदए होजा, नो अवेदए होज्जा' हे गौतम ! स प्रतिपन्नावधिज्ञानः सवेदको भवति, नो अवेदको भवति, विभङ्गज्ञानस्य अवधिज्ञानपरिणतिकाले नो वेदक्षयो भवति, अत एवासौ सवेद एव भवति, नावेद इति भावः। गौतमः पृच्छति 'जइ सवेदए होज्जा, किं इत्यी वेयए होज्जा,पुरिसवेयए होज्जा, नपुंसगवेयए होज्जा, पुरिसनपुंसगवेयए होज्जा ?' हे भदन्त ! यदि स सवेदको भवति तदा किं स्त्रीवे. उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! वह (जहण्णेणं सातिरेगट्ठवासाउए, उक्कोसेणं पुधकोडि आउए होज्जा) जघन्यसे कुछ अधिक
आठ वर्ष की आयुमें और उत्कृष्टसे एक पूर्वकोटिकी आयु में होता है। ____ अब गौतमरवामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- से णं भंते ! किं सवेदए होज्जा, अवेदए होज्जा) हे भदन्त ! वह प्रतिपन्न अवधिज्ञानवाला विभंगज्ञानी पुरुष क्या बेदवाला होता है ? अवेदवाला होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा! सवेदए होज्जा, नो अवेदए होज्जा) हे गौतम ! वह वेदवाला ही होता है-वेदरहित नहीं होता है । क्यों कि विभंगज्ञान जव अवधिज्ञान रूप में परिणत होता है उस काल में वेद का क्षय नहीं होता है-इसलिये यह सवेद में ही होता है अवेद में नहीं होता है। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(जइ सवेदए होज्जा किं इत्थीवेयए होज्जा, पुरिसवेथए होज्जा, नपुंसगवेयए होज्जा) हे भदन्त !
महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा !" है गीतम! (जहण्णेणं सातिरेगढवासाउए, उक्कोसेण पुवकोडि आउए होज्जा) तेनु माछाममा मायुष्य माई વર્ષથી ડું વધારે અને અધિકમાં અધિક આયુષ્ય એક પૂર્વકેટિનું હોય છે.
गौतम स्वामी प्रश्न-( से णं भवे ! किं सवेदए होज्जा, अवेदए होज्जा ?) હે ભદન્ત ! તે પ્રતિપન્ન અવધિજ્ઞાનવાળો વિલંગજ્ઞાની પુરુષ શું દવા लीय छ अहवाणे डाय छ ? उत्तर-(गोयमा ! सवेदए होजा, नो अवदेह होजा) 3 गौतम ! हवाणे डाय छ, २६२डित तो नथी. तेनुं ॥२एY એ છે કે વિર્ભાગજ્ઞાન જ્યારે અવધિજ્ઞાનરૂપે પરિણત થાય છે, તે કાળે વેદને ક્ષય થતું નથી–તેથી તે વેદસહિત જ હોય છે, વેદરહિત હેતે નથી. '