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भगवती सूत्रे
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करंमि संघयणे होज्जा' हे भदन्त ! स खलु विभङ्गज्ञानी प्रतिपन्नावधिज्ञानः कतमस्मिन् संहनने भवति ? भगवानाह - गोयमा । बहरोसमनाराय संघयणे होज्जा हे गौतम! स प्रतिपन्नावधिज्ञानः- वचऋपभनाराचसंहनने भवति, तस्य प्राप्तव्य केवलज्ञानत्वात्, केवलज्ञानमाप्तिश्च प्रथम संहनने एव संभवतीति भावः एवमग्रेऽपि वोध्यम् । गौतमः पृच्छति - ' से णं भंते ! कयरंमि संठाणे होज्जा ? ' हे भदन्त ! स खलु प्रतिपन्नावधिज्ञानः कतमस्मिन् संस्थाने भवति ?, है - जिस जीव के परिणाम अवस्थित अवस्थावाले हैं उसकी अपेक्षा तो अनाकार उपयोग में भी लब्धि का लाभ हो सकता है।
अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( से णं भंते! करंमि संघणे होज्जा ) हे भदन्त ! वह प्रतिपन्न अवधिज्ञानवाला विभंगज्ञानी किस संहनन में होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा ) हे गौतम ! ( वइरोस भनारायसंघयणे होज्जा) वह प्रतिपन्न अवधिज्ञान वाला विभंगज्ञानी वज्रऋषभनाराच संहनन में होता है । क्यों कि ऐसा जीव प्राप्तव्य केवलज्ञानवाला होता है और केवलज्ञान की प्राप्ति प्रथम संहनन में ही होती है इसलिये यहां ऐसा कहा है । इसी तरह से आगे भी जानना चाहिये ।
अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( से णं भंते । कयरंमि ठाणे होज्जा ) हे भदन्त | वह प्रतिपन्न अवधिज्ञानवाला विभंगज्ञानी जीव किस संस्थान में होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा)
છે. જે જીવના પિરણામ અવસ્થિત અવસ્થાવાળા હાય છે, તેની અપેક્ષાએ તે અનાકાર ઉપયાગમાં પશુ લબ્ધિના લાભ સભવી શકે છે.
गौतम स्वाभीना प्रश्न - ( से णं भंते ! कयर'मि संघयणे होज्जा १ ) डे ભદન્ત ! તે પ્રતિપન્ન અવધિજ્ઞાનવાળે વિભ’ગજ્ઞાની કયા સહુનનયુકત હોય છે ?
महावीर अलुने। उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम ! ( वइरोसभनारायसंघयणे होज्जा ) ते वऋषभनाथ सडननवाणी होय छे, अरण येथे। જીવ પ્રાસબ્ય કેવળજ્ઞાનવાળા હાય છે, અને કેવળજ્ઞાનની પ્રાપ્તિ પ્રથમ સહનનમાં જ થાય છે, તેથી અહીં આ પ્રમાણે કહ્યુ છે. એજ પ્રમાણે આગળ પણ સમજવું.
गीतभ स्वाभीना प्रश्न - ( से णं भते । कयर' मि संठाणे होज्जा १ ) डे ભદ્દન્ત ! તે પ્રતિપન્ન અવધિજ્ઞાનવાળા વિભ’ગન્નાની જીવ કેટલા સસ્થાન ( आर ) वाणी होय छे !