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भगवतीने हेतुना करी करोऽस्यास्तीति करी इति. व्यपदिश्यते ' एवामेव गोयमा ! जीवे कि, सोइंदिय-चक्खिदिय-धाणिदिय-जिभिदिय-फार्सिदियाई-पडुच्च पोग्गली,जीवं पडुच्च पोग्गले' हे गौतम ! एवमेव तथैव जीवोऽपि श्रोत्रेन्द्रिय-चक्षुरिन्द्रियघ्राणेन्द्रिय-जिहेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रियाणि प्रतीत्य-आश्रित्य पुद्गली पुद्गल श्रोत्रेन्द्रियादिरस्यातीति पुद्गली इति व्यपदिश्यते, जीवं च प्रतीत्य आश्रित्य पुद्गल इति ध्यपदिश्यते तथा च श्रोत्रेन्द्रियाधपेक्षया 'पुद्गली इति, जीवापेक्षया च पुद्गल इति व्यपदिश्यते जीवस्य पुद्गलसंज्ञत्वात् । तन्निगमयन्नाह-'से तेणटेणं गोयमा । एवं वुच्चइ जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि, ' हे गौतम । तत् तेनार्थेन एवमुच्यते जीवः पुद्गली अपि इन्द्रियायपेक्षया व्यपदिश्यते, अथ स्वापेक्षया 'पुद्गलः' संबंध से-करी हाथवाला कहा जाता है ( एवामेव ) इसी तरह से (जीवे वि) जीव भी (सोइंदिय चक्खिदिय, घाणिदिय, जिभिदिध, फासिंदियाई पडुच्च पोग्गली जीवं पडुच्च पोग्गले) हे गौतम! जीव भी श्रोत्रेन्द्रियरूप, चक्षुरिन्द्रियरूप, घ्राणइन्द्रियरूप, जिह्वेन्द्रियरूप और स्पर्शन इन्द्रियरूप पुद्गल वाला होने के कारण पुगली ऐसा कहा जाता है
और जीव की अपेक्षा से पुद्गल ऐसा कहा जाता है। क्यों कि " पुद्गल" ऐसी संज्ञा जीव की है। जीव की “पुद्गल "ऐसी संज्ञा होने का कारण यह है कि उसमें अपेक्षा कृत पूरण गलनता-गुणों में हानि वृद्धि होती रहती है। (से तेणटेणं गोयना! एवं बुच्चइ जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि) इसी कारण से हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि जीव पुद्गली भी कहा जाता है और पुद्गल भी कहा जाता है । इन्द्रियादिकोंकी अपेक्षासे वह पुद्गली और अपने जीवकी अपेक्षासे वह पुगल ऐसा कहा जाता है।
ॐ प्रभाए “जीवे वि" १ प ( सोइंदिय चम्खि दिय, घाणि दिय, जिभिदिय, फासि दियाई पडुच्च पोगली जीव' पडुच्च पोग्गले ) 3 गौतम ! શ્રોત્રેન્દ્રિયરૂપ, ચક્ષુઈન્દ્રિયરૂપ, ધ્રાણેન્દ્રિયરૂપ, જિહ્વાઈન્દ્રિયરૂપ અને સ્પર્શેન્દ્રિય રૂપ પુલવાળો હોવાને કારણે પતલી કહેવાય છે. અને જીવની અપેક્ષાએ તેને પુલરૂપ પણ કહી શકાય છે. કારણ કે “ લ” એવી સંજ્ઞા જીવની છે. જીવને “પુલ” એવી સંજ્ઞા આપવાનું કારણ એ છે કે તેમાં અપેક્ષાકૃત (अभु अपेक्षा) पूरए गहनता-गुवामा होनिवृद्धि यती २ छ. " से तेणट्रेणं गोयमा ! एव वुच्चइ जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि) 3 गौतम ! त કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે જીવને પુદ્ગલી પણ કહી શકાય છે અને પુલ પણ કહી શકાય છે. ઈન્દ્રિયાદિકની અપેક્ષાએ તે પુદ્ગલી કહેવાય છે અને જીવની અપેક્ષાએ તે પુદ્ગલ કહેવાય છે.