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भगवती सूत्रे रायिकं च, गौतमः पृच्छति-नेरइयाणं भंते ! कइ कम्म पगडीओ पण्णत्ताओ ?' हे भदन्त ! नैरयिका कति कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-' गोयमा । अट्ट' हे गौतम ! नैरयिकाणाम् अष्ट कर्म प्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ताश्च प्रतिपादिता एव ‘एवं सव्यजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयवाओ जाव वेमाणियाणं ' एवम् उक्तरीत्या सर्वजीवानाम् अष्ट कर्मप्रकृतयः स्थापयितव्याः-प्रतिपादयितव्या यावत् भवनपति-पृथिवीकायिका केन्द्रिय द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-मनुष्य-बानव्यन्तर-ज्योतिपिक-वैमानिकानां चतुर्विंशतिदण्डकपदपतिपायानाम् अप्ट कर्मप्रकृतयः प्रतिपादयितव्याः । गौतमः पृच्छति-' नाणावरणि
अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(नेरझ्या णं भंते ! कह कम्मपगडीओ एण्णत्ताओ) हे भदन्त ! नारक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियां कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा! अट्ठ) हे गौतम ! नारक जीवों के आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं। (एवं सन्चजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेधवाओ जाव वेमाणियाणं ) इसी तरह से समस्त जीवों के आठ कर्मप्रकृतियां हैं ऐसा कथन करना चाहिये। अर्थात्-भवनपति, पृथिवीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीव, दीन्द्रिय जीव, त्रीन्द्रिय जीव, चतुरिन्द्रियजीव, पञ्चेन्द्रियजीव, मनुष्य, बानव्यन्तर, ज्योतिषिक, और वैमानिक इन चौवीसदण्डक प्रतिपाद्य जीवों के ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं। ____ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं (नाणावरणिजस्स णं भंते! कम्मस्स केवइया अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता) हे भदन्त !
गौतम स्वामीना प्रश्न-" नेरइयाण' भते ! कइ कम्मपगडीओ पण्णताओ ? હે ભદન્ત! નારક જીવની કેટલી કર્મપ્રકૃતિ કહી છે?
महापार प्रमुनी उत्त२-" गोयमा !" गौतम ! “ अटू" ना२४ वामां माठे म भ प्रकृतियाना समाव य छे. (एव सव्वजीवाण अटु कम्मपगडीओ ठोवेयवाओ जोव वेमाणियाण) से प्रभाव वैभानि દે પર્યન્તના સમસ્ત માં પણ આઠ કમuપ્રકૃતિને સદ્ભાવ હોય છે. એટલે કે ભવનપતિ, પૃથ્વીકાયિક આદિ એકેન્દ્રિય જી, હીન્દ્રિય છે, ત્રીન્દ્રિય છે, ચતુરિન્દ્રિય છે, પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ જ, મનુષ્ય, વાનવ્યન્તર, તિષિક, અને વૈમાનિક, આ વીસ દંડક પ્રતિપાદ્ય જીની જ્ઞાનાવરણીય આદિ આઠ કર્મપ્રકૃતિ કહી છે.
वे गौतम स्वामी महावीर प्रसुन सेवा प्रश्न पूछे छे 3-( नाणावरणिजस्त णं भते ! कम्मरस केवइया भविभागपलिच्छेया पण्णता ?) Bard!