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प्रन्द्रिका टीका श० ८ उ. ८ सू० ३ कर्मचन्द्रवरूपनिरूपणम्
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ताश्च नपुंसकपश्चात्कृताश्च वध्नन्ति । तद् भदन्त । किं वद्धवान, वध्नाति, अन्त्स्यति १, बद्धवान्, वध्नाति न भन्त्स्यति २, बद्धवान् न वध्नाति, भन्त्स्यति ३ बद्धचाहिये - (जाव अहवा इत्वीपच्छाकडा य, पुरिसपच्छाकडा य, नपुंस गपच्छाकडा य बंधति ) यावत् अथवा स्त्री पश्चात्कृत जीव, पुरुषपश्चा त्कृत जीव और नपुंसक पश्चात्कृत जीव उस ऐर्याविधिक कर्म को बांधते हैं यहां तक |
( तं भंते ! किं बंधी बंध, बंधिस्स १, बंधी बंध न बंधिस्स २, बंधी न बंध बंधिस्सर ३, बंधी न बंधह, न बंधिस्स ४, बंधी बंधह, frees ५, न बंधी बंध, नबंधस्स ६, न बंधी न बंध, बंधिस्सह ७, न बंधी न बंध, न बंधिस्सह ८) हे भदन्त ! उस ऐर्यापथिक कर्म को पहिले किसी जीव ने क्या बांधा है ? वर्तमान में वही जीव उसे क्या बांधता है ? भविष्यत् में वही जीव क्या उसे बांधेगा ? १, क्या उसको किसी ने पूर्वकाल में बांधा है ? वर्तमान में वह उसको बांधता है ? भविष्यत् में क्या वह उसको नहीं बांधेगा ? २, पूर्व में इसे किसी जीव ने बांधा है, वर्तमान में वह जीव इसे बांधता नहीं है ? और आगे वह जीव इसे बांधेगा नहीं ? ३, पूर्व में इसको किसी जीव ने बांधा है ? वर्तमान में वही जीव इसको नहीं बांधता है, आगे वही जीव
ले. ( जात्र-अहवा इत्थी पकडा य, पुरिसपच्छाकडा य, नपुंसग-पच्छकडा य ब ंधति ) २६ भे। लौंग मा प्रमाणे मनशे अथवा स्त्री-पश्चात्कृत लवे, પુરુષ-પશ્ર્ચાત્યંત જીવા અને નપુસક-પશ્ચાત્યંત જીવે આ અય્યપથિક કમ માંધે છે. અહી સુધીના ૨૬ ભુંગા સમજવા.
( त' भवे ! कि बंधी वध, व धिस्सइ १, बधी वध, न वधस्स २, बधी न बधइवधिइ ३, वधी न ववइ, न व धिम्सइ ४, न बंधी बंध, बधिरइ ५, नववी न वधइ, न वधिस्सइ ६, न बंधी वधइ, 'धी न बधइ, न वधिस्सइ ८ ) हे गढन्त ! आर्या કોઈ જીવે બાધ્યું છે, વત માનમાં શુ એજ જીવ તે કર્માં ખાધે , ભવિષ્યમાં શું એજ જીવ તે કમ ખાધશે ? (૧) શુ કેાઇ જીવે ભૂતકાળમા તે ખાધ્યુ છે, વર્તમાનમાં શું એ જ જીવ તે કર્માં ખાધે છે, ભવિષ્યમાં શુ' એજ જીવ તે ક' નહી છાપે ? (૨) ભૂતકાળમાં કોઇ જીવે તે કર્મ બાધ્યુ છે, વર્તમાનમા તે જીવ તે કર્મ ખાતે નથી, અને ભવિષ્યમા તે જીવ તેને માધશે? (૩) ભૂતકાળમાં કાઇ જીવે તે બાધ્યું છે, વર્તમાનમાં એજ જીવ તેને ખાધતે નથી
व धिरसइ ७, न
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