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प्रमेन्द्रिका टी०।०८३०९१०१० औदारिकादियन्धस्य परारसम्बन्धनि०४२५ बन्धको भवति, अपितु अबन्धको भवति, ' एवं जहेव सवयेणं भणियं, तहेव देसर्व धेणवि, भाणियव्वं, जाव कम्मगस्म णं' एवम् उक्तरीत्या यथैव औदारिकस्य शरीरस्य सर्व वन्धेन सर्वबन्धविपयाभिलापेन भणितं चैक्रियादीनामवन्धकत्वं वन्धफत्वं च यथायोगं प्रतिपादितं तथैव औदारिकस्य शरीरस्य देशबन्धेनापि वैक्रियादीनामवन्धकत्वं वन्धकत्वं च यथायोगं प्रतिपत्तव्यं यावत्-औदारिकशरीरस्य देशवन्धकः आहारकशरीरस्य नो बन्धकोऽपितु अवन्धकः, एवमौदादिकदेशबन्धका तैजसस्य शरीरस्य तु देशबन्धको भवति नो अबंधकः, एवं कामणिशरीरस्यापि खलु देशवन्धको भवति, नो अवन्धक इति भावः, अथ वैक्रियस्य सर्ववन्धमाश्रित्य शेषाणां वन्धप्ररूपणार्थमाह-'जस्स णं भंते ! वेउब्धियसरीरस्स सबबंधए, सेणं भंते ! ओरालियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! वैक्रियशरीर का बंधक नहीं होता है, अबंधक ही होता है-इसी घात को सूत्रकार ने (जहेव सव्वबंधेणं भणियं तहेव देसघंधेण वि भाणियव्वं जाव कम्मगस्स ण) इम पाठ द्वारा समझाया है। इस में यह सम झाया गया है कि जिस प्रकार से औदारिक शरीर के सर्वपंधविषयक अभिलाप द्वारा चैक्रिय आदि की बंधकता और अबंधकता प्रकट की गई है, उसी प्रकार से औदारिकशरीर के देशबंध के साथ में भी वैक्रिय आदि शरीगे की बंधकता और अवधकता जाननी चाहिये-तथा चऔदारिक शरीर का देश बंधक जीव आहारकशरीर का बंधक नहीं होता है-किन्तु अबन्धक ही होता है। इसी तरह से वह तेजमशरीर का देशबंधक ही होता है सबंधक नहीं होता। और न वह उसका अवधक ही होता है । इसी तरह से कार्मणशरीर का भी देशबंधक ही होता है अबन्धक और सर्वबंधक नहीं होता है। २५ ४ सय छे. (जहेव सव्वय घेण भणिय तहेव नेसर घेण वि भाणियब्ब जाब कम्मगस्मण ) म मोरि शरीर सपरिषय माता द्वारा વૈક્રિય આદિની બંધકતા અને અબ ધક્તા પ્રકટ કરવામાં આવી છે, એ જ પ્રમાણે દારિક શરીરના દેશબંધની સાથે ક્રિય આદિ શરીરની બંધકતા અને અબ ધક્તા સમજવી જેમ કે-ઓરિક શરીરને દેશબંધક જીવ આહારકશરીરને બંધક હેતે નથી પણ અબ ધક જ હોય છે એજ પ્રમાણે એવો જીવ તૈજસશરીરને દેશબંધક જ હેાય છે-અબંધક છે નથી. એ જ પ્રમાણે
દારિક શરીરને દેશમાં ધક જીવ કામ શરીરને પણ દેશબંધક જ હોય છેતે તેને બંધક અને સર્વ ધક હેતે નથી.