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प्रमेयचन्द्रिका टीश०८३.९सूऔदारिकादिवन्यस्य परस्परसम्बन्धनि० ४१७ मदन्त ! औदारिकशरीरस्य किं वन्धकः, अवन्धकच ? गौतम । नो वन्धकः, अवन्धकः, एवं यथा सर्वबन्धेन भणितं तथैव देशवन्धेनापि भणितव्यं यावत् कार्मणस्य, यस्य खलु भदन्त ! आहारकशरीरस्य सर्वबन्धः, स दलु मदन्त ! औदारिकशरीरस्य किं वन्धकः, अवन्धकः ? गौतम ! नो बन्ध, अबन्धकः, एवं वैक्रियशरीरस्थापि, तेजसफार्मणयोः यथैव औदारिकेण समं भणितम् तथैव भणितव्यम् । अबंधए) हे भदन्त ! जो जीव चैक्रियशरीर का देशव धक होता है वह क्या औदारिक शरीर का बंधक होता है या अवन्धक होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (नो बंधए, अबंधए एवं जहा सव्वबंधे णं भणियं, तहेव देसवंधेण वि भाणियव्वं जाव कम्मगस्स) क्रियशरीर का देशबंधक जीव औदारिक शरीर का बंधक नहीं होता है विन्तु अबंधक होता है। इस तरह से जैसा बैक्रियशरीर के सर्वबंध के विषय में कहा गया है उसी तरह से वैक्रियशरीर के 'देशबंध के विषय में भी यावत् कार्मण शरीर तक कहना चाहिये । ( जस्स णं भते ! आहारगसरीरस्स सब्यवंधे से णं भंते ओगलियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए । हे भदन्त ! जो जीच आहारक शरीर का सर्वबंधक है, वह क्या औदारिक शरीर का वंधक होता है या अवधक होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! आहारक शरीर का सर्वपंधक जीव (नो बंधए, अबंधप ) औदारिक शरीर का यंधक नहीं होता है किन्तु अबंधक होता है । ( एवं वेबियस्म वि, वे उब्धियसरीरस्स देमब'धे, से णं भते । ओरालियमरीरस्स किव धए, अबंधए ) है ભદન્તા જે જીવ ચિક્રિય શરીરને દેશમાં ધક હોય છે, તે શુ દારિક શરીરનો બંધક हाय मम डाय छ ? (गोयमा !) 3 गौतम । (नो वधए, अवधए-एव जहा सव्वध घेणं भणिय, तदेव देसब वेण वि भाणियव्वं, जाव कम्मगस्स ) ठिय શરીરને દેશબંધક જીવ ઔદારિક શરીરને બંધક હોતું નથી પણ અબંધક હોય છે. આ પ્રમાણે જેવું કથન વૈક્રિય શરીરના સર્વબંધના વિષયમાં કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણેનું કથન પંકિય શરીરના દેશબંધના વિષયમાં પણ કાણ शरी२ ५यन्तना विषयने अनुसाक्षीने ४२ मे. ( जसणं भत्ते ! आहारग सरीरस्म सव्वव थे, से ण भते ! ओरालियसरीररस कि वध, अबधए ? ) હે ભદન્ત!, જે જીવ આહારક શરીરને સર્વબ ધક છે, તે શુ ઔદા િરી२। म य छ, २५५५४ हाय छ ? (गोयमा ! ) गौतम ! माली २४ ।।२।। स ५४ ७१ ( नो व धर, अबधए ) मोहा४ि रन ! खाता नथी ५:1431 छे ( एवं वे उब्धियस्स वि, वेयाकम्माण जदेव