________________
प्रमेrचन्द्रिका टीका श० ८ उ०९ सु० ९ कार्मणशरीर प्रयोगवन्धवर्णनम् ३८५ बन्धः खलु द्विविधः मासः, तम्यथा - अनादिकः सपर्यवसितः, अनादिकः अपर्यवसितो या, एवं यथा तेजसस्य संस्थापना तथैव एव यावत् अन्तरायकर्मणः ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरमयोगवन्धान्तरं खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरं भवति गौतम ! अनादिकस्य एवं यथा तैजसशरीरस्य अन्तरं तथैच, एवं यावत् अन्तरालओ केचिचर हो ) हे भदन्त ! ज्ञानवरणीय कार्मणशरीरप्रयोगबंध काल की अपेक्षा तक रहता है ? ( गोयमा ) हे गौतम । ( जाणावरणिज्जकम्मासरीरप्प ओग धे दुबिहे पण्णत्त) ज्ञानावरणीयकार्मणशरीप्रयोग दो प्रकारका कहा गया है । (संजहा) जो इस प्रकार से हैं । ( अणाइए सपज्जबसिए, अणाइए अपज्जबसिए) अनादि सपर्यवसित अनादि पर्यवसित ( एवं जहा लेयणस्स संचिणा तहेब, एवं जाव अंतराइयकम्मस्स ) इसी तरह से यावत् जैसा तैजसशरीर का स्थिति काल कहा है उसी तरह से यहां पर भी कहना चाहिये । इसी तरह से यावत् अंतराय कर्म का स्थिनिकाल जानना चाहिये । ( णाणावरणि ज्जकम्पासरीरप्पओगबंधंतरे णं भंते ! कालओ केवचिचर होड़ ) हे भदन्त | ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कालकी अपेक्षा कितना कहा गया है ? ( गोधमा ) हे गौतम! ( अणास्त्र एवं तेयगसरीरस्स अंतरं तहेव, एवं जाव अंतराइयस्स ) ज्ञानवरणीयकासंगशरीप्रयोगबंध का अंतरकाल की अपेक्षा अनादि अनन्त और अनादि
હે ભદન્ત ! જ્ઞાનાવરણીય કામ શરીરપ્રયાગખધ કાળની અપેક્ષાએ કયા સુધી २हे छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम । ( णाणावर णिज्जकम्मासरीरप्पओगव घे दुवि पण्णत्ते ) ज्ञानावरीय अगुशरीरप्रयोगमध में प्रारना उद्योछे ( तं जहा ) ? प्रा। नीचे प्रभा छे - ( अणाइए सपज्जवसिए, अणाइए अपज्जवसिए) (१) मनाहि सपर्यवसित ( २ ) अनाहि अपर्यवसित ( एवं जहा तेयगस्स सचिणा, तहेब, एव जाव अंतगइयकम्मरस ) तैन्स शरीरने भेवेो સ્થિતિકાળ કહ્યો છે, અવા સ્થિતિકાળ અહી પણુ કહેવા જોઇએ. એજ પ્રમાણે અંતરાય પર્યન્તના કામ ણુશરીરપ્રયેાગ. ધન સ્થિતિકાળ સમજવે ( णाणावर णिज्ज कम्माँसीरप ओगण धतरेण भंते । कालओ केवच्चिर होइ १ ) હે ભદન્ત ! જ્ઞાનાવરણીય કામ ણુશરીરપ્રયાગમ ધનુ અ તર કાળની અપેક્ષાએ डेंटलु छ ? ( गोयमा ! ) हे गोतम ! अणाइयस्स एवं जहा तेयगसरी रस्स अंतर तक्षेत्र, एवं जाव अतराइयस्स ) ज्ञानावरणीय अर्थ शरीर प्रयोग धनु અંતર કાળની અપેક્ષાએ અનાદિ અનંત અને અનાદિ સાન્ત કહ્યું છે જે
भ ४९