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भगवती हे गौतम! पश्चविधो व्यवहारः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा - आगमे, सुए, आणा, धारणा, जीए' तद्यथा-आगमः श्रुतम्, आज्ञा, धारणा, जीतम्, अत्र व्यवहरणं व्यवहार इति व्युत्पत्त्या मोक्षाभिलापिजीवप्रवृत्तिरूपः, तद्धेतुत्वाद् ज्ञान विशेषोऽपि व्यवहार उच्यते, तत्र आगम्यन्ते परिच्छिद्यन्ते निश्वयविपयी क्रियन्ते अर्थाः अनेनेत्यागमः - केवलज्ञान - मनः पर्यवज्ञाना - ऽवधिज्ञान-चतुर्दशपूर्व दशपूर्वनत्र पूर्वरूपो बोध्यः तथाविधागमेन
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गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है - ' कइविहे णं भंते ! बवहारे पण्णत्ते ' हे भदन्त ! जिस व्यवहार से प्रत्यनीकों की शुद्धि होती है वह व्यवहार कितने प्रकार का कहा गया है, उत्तर में प्रभु कहते हैं ( गोंयमा) हे गौतम ! ( पंचविहे ववहारे पण्णत्ते) व्यवहार पांच प्रकार का कहा गया है । ' तंजहा' जैसे -' आगमे, सुए, आणा, धारणा, जीए' आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत 'व्यवहरणं व्यवहारः ' इस व्युत्पत्ति के अनुसार मोक्षाभिलाषी जीत्र का प्रवृत्ति और निवृत्ति रूप जो ज्ञानविशेष है वह व्यवहार का हेतु होनेसे व्यवहाररूप से कहा गया है । ' आगम्यन्ते परिच्छिद्यन्ते निश्चयविषयी 'क्रियन्ते अर्थाः अनेन इति आगमः ' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिस से जीवादिक पदार्थ जाने जाते हैं-निश्चय के विषयभूत बनाये जाते हैंऐसा वह ज्ञान आगम है । ऐसा आगमरूप ज्ञान केवलज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान, अवधिज्ञान है, तथा चतुर्दशपूर्वधारी का ज्ञान, दश पूर्वधारी का
अलुने या प्रमाणे प्रश्न पूछे छे - ' कइ विहेणं भंते ! ववहारे पण्णत्ते ? ” હું ભર્દન્ત 1 જે વ્યવહાર પ્રત્યેનીકેની શુદ્ધિ થાય છે, તે વ્યવહાર કેટલા अअरना उह्या छे ? महावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम!
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पचविहे ववहारे पण्णत्ते " व्यवहार पांथ प्रारना उद्यो छे. "त जहा " ते यांथ प्रहारो नीचे प्रमाणे हे - " आगमे, सुए, आणा, धारणा, जीए " આગમ ૨ શ્રુત, ૩ જ્ઞાન, ૪ ધારણા અને ૫ જીત " व्यवहरणं व्यवहारः " આ વ્યુત્પત્તિ અનુસાર મેાક્ષાભિલાષી જીવનું પ્રવૃત્તિ અને નિવૃત્તિ રૂપ જે જ્ઞાન વિશેષ હાય છે તે વ્યવહારના કારણુરૂપ હાવાથી તેને જ વ્યવહારૂપ કહ્યુ છે " आगम्यन्ते परिच्छिद्यन्ते निश्चय विषयीक्रियन्ते अर्थाः अनेन इति आगम." मी આ વ્યુત્પત્તિ અનુસાર જેના દ્વારા જીવાદિક પદાર્થાને જાણી શકાય છે જેના દ્વારા તેમના નિશ્ચય કરી શકાય છે—એવુ જે જ્ઞાન તે આગમ છે. એવુ આગમ રૂપ જ્ઞાન-કેવલજ્ઞાન મન:પર્યયજ્ઞાન, અધિજ્ઞાન, તથા ચૌદ પૂ`ધારીનું જ્ઞાન