________________
भगवतीसूत्र जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेण अनन्तं कालं वनस्पतिकालः, एवं यावत् अधःसप्तम्याः, नवरं या यस्य स्थितिः जघन्यिका सा सर्ववन्धान्तरं जघन्येन अन्तर्मुहूर्ताभ्यधिका कर्तव्या, शेषं तदेव, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमनुष्याणांच यथा वायुकायिकानाम , असुरकुमार-नागकुमार-यावत सहसारदेवानाम् , एतेपां यथा रत्नप्रभाषथिवीनैरयिकाणां, नवरं सर्ववन्धान्तरं यस्य या स्थितिः जघन्यिका सा अन्तर्मुहुर्तावैक्रिय शरीरप्रयोग के (सव्वबंधतरं ) सर्वबंध का अन्तर (जहण्णेणं) जघन्य से (दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमभहियाई, उक्कोसेणं वण. स्सइ कालो-देसबंधंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्त) एक अन्तर्मुहर्त अधिक दश हजार वर्ष का होता है और उत्कृष्ट से वनस्पति कालपर्यन्त होता है। तथा देशबंध का अंतर जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का होता है
और (उक्कोसेणं अणंतकालं-वणस्सइकालो) उत्कृष्टसे अनंतकालकावनस्पति काल का होता है । ( एवं जाव अहे सत्तमाए-नवरं जा जस्स ठिई जहणिया सा सव्वधंतरं, जहण्णेणं अंतोमुत्तमनभहिया काय. व्वा सेसं तं चेव) इसी तरह नीचे सातवीं पृथिवीतक जानना चाहिये। परन्तु-विशेषता ऐसी है कि जघन्य से सर्वबंध का अन्तर जिसनारक की जितनी जघन्य स्थिति है उतनी अन्तर्मुहूर्त अधिक जघन्य स्थिति प्रमाण जानना चाहिये। बाकी और सब कथन पूर्वोक्तानुसार जानना चाहिये। (पंचिंदियतिरिक्खजोणियमणुस्साण य जहा वाउक्काइयाणं
ना२४ वन ठिय शरीर प्रयोग ( सव्वबंध'तर') समयान्त२ (जहण्णेणं) माछामा साधु ( दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमभहियाई, उक्कोसेण वणरसइ कालो-देसबधतर जहण्णेणं अंतोमुहूत्त) इस &२ वर्ष ४२di ४ मधि અન્તર્મુહૂર્તનું હોય છે અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ (વધારેમાં વધારે) વનસ્પ તિકાળ પર્યન્તનું હોય છે. તથા દેશબંધનું અંતર ઓછામાં ઓછું એક मन्तभुत माने ( उक्कोसेणं) पधारेभा पधारे (अणंतं कालं वणस्सइकालो) मनतनु-वनस्पतिजनु उसय छे. (एव जात्र अहे सत्तमाए-नवर जा जस्स ठिई जहण्णिया सा सव्वबंध'तर, जपणेणं अंतोमुहत्तमब्भहिया कायव्वा सेसं त चेव ) मेरी प्रमाणे नाये सातभा पृथ्वी सुधान। विषे समन. ५४ તેમાં એટલી જ વિશેષતા છે કે સર્વબંધનું જઘન્ય અંતર જે નારકની જેટલી જઘન્યસ્થિતિ હોય છે એટલી જઘન્ય સ્થિતિ કરતાં અન્તર્મુહૂર્ત પ્રમાણ અધિક સમજવું. બાકીનું સમરત કથન પૂર્વોક્ત કથન પ્રમાણે જ સમજવું. पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय मणुस्साण य जहा वाउक्काइयाणं असुरकुमार नाग